Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 643
________________ ५०८ ] तहिँ जमुणायडे जमुणावंकें थिरु थिउ पडिमा जोएँ जोइउ रूसिवि प्रसउणु भणेवि निरंतरु तं सहेषि उप्पापवि केवलु प्रज्जवि सिद्धखेत्तु तहो अच्छइ दक्खिणदेसि प्रत्थि अहिरामउ तत्थ महीवइ वइरिवियारउ तहो महएवि महासइ सुव्वय मंति उवासउ नामें पालउ निंदण पहूइ विक्खाया ताहँ म सो एक्कें मुणिणा तेण निमित्तें तेण मयंधें रइयदियंबररूपवंचें तेण वि तं बइयरु प्रमुणतें घत्ता—पंचसय पहाणा जिणमयजाणा पीलिय रायाण घल्लेवि घाण सिरिचंदविरइयज तह य पलीवि गोव्वरे गोदुग्र' पंचाहिँ रिसिसएहिँ संजुत्तउ कुसुमउरम्मि महीयलपालउ सुव्वय नामें सुव्वयधारी श्रग्मुि कावि सुबंधु दुइज्जउ कवि हो उ तेथुजि चाणक्कउ पयणियजण मणनयणाणंदहो खुहिय राय पच्चंत निवासिय दुग्त्ह बलेण किं किज्जइ १०. १ मुणिणा । Jain Education International [ ५०. ६. ६ राएं दुम्मइकुमुयमियंकें । पारद्धिहे जंतेण पलोइउ । वाहिँ पूरिउ तेण दियंबरु । सिद्धु बुद्ध हुउ सासउ केवलु । पि तत्थ जणु नवेनि नियच्छइ । पुरे कुलालकर्ड धीरमइ । पत्ता तो वि समाहि जइ ॥ ९ ।। १५ १० घत्ता - मरिऊण समाहिप्र हयभववाहि पट्टणु कुंभयारकडनामउ । दंडउ नामें दंडहिँ सारउ । साविय पालियपंचाणुव्वय । दुज्जणु जिणमयछिद्द निहालउ । साहुहुँ पंचसया तत्थाया । वाएं मंति परज्जिउ गुणिणा' । सुव्वय महएवी संबंधें । रोसाविउ नरनाहु दइच्चें | पीलाविय सयल वि रिसि जंतें । गय सव्वत्थसिद्धि समण । १० सत्तममहि पाविय पावें [ भाविय ] मंति महीवइ वे वि जण ।। १० ।। ११ मुणि चाणक्कु थियउ परमट्ठा । कंतु वि समाहि संपत्तउ । होंत प्रसि नंदनामालउ । पिययम सयलंतेउरसारी । मंति तासु सयडालु तइज्जउ । निवसइ बंभणु गुणिचाणक्कउ । कावें एक्कहिँ वासरे नंदहो । एह वत्त एयंते पयासिय । पण तो वरि संधि रइज्जइ । ११. ९ मोट्ठए । १० For Private & Personal Use Only ५ ५ www.jainelibrary.org

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