Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 638
________________ ४६. २३. ११ ] सो उवसग्गु सहेप्पिणु धीरउ देवागमणु निवि उवसंत उ नरसी वि नरपालहो पुत्तहो रायसहासें सहुँ पव्वइयउ कहकोसु Jain Education International उ मोक्खहो जायउ असरीरउ । जाउ बुद्धदासु जिणभत्तउ । रज्जु समर्पवि गुणगणजुत्तहो । हुयउ पसिद्ध तवसि अइसइयउ । घत्ता - सिरिचंदुज्जलकायउ देवनिकायथउ । जायउ गेवज्जामरु कालें कलुसचउ || २३॥ विविहरसविसाले पेयको ऊहलाले । ललियवयणमाले अत्थसंदोहसाले । भुवणविदिनामे सव्वदोसोवसामे । इह खलु कहकोसे सुंदरे दिन तोसे || मुरिण सिरिचंद उत्ते सुविचित्ते णंतपयदसंजुत्ते । पन्नासम संधी एसो एगुणश्रो भणित्रो ॥ ॥ संधि ४९ ॥ [ ५०३ For Private & Personal Use Only १० www.jainelibrary.org

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