Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 636
________________ ५०१ ] ४६. २०. १० ] कहकोसु किं कारणु हयासे महुँ संवलु गेण्हेवि णाय सइरिणी।। पइँ भुक्खाण अज्ज हउँ मारिउ तुहुँ पच्चक्ख वइरिणी ॥ घत्ता-खम कर ताण पउत्तउ मा रूसहि दइया । पइँ जोएप्पिणु हउँ तहिँ जाएप्पिणु अइया ॥१८॥ २० एउ सुणेवि किंचि उवसंतें भणिय भयाउल कंता कतें । किं पइँ खवणउ तत्थ न दिट्ठउ किं तुह तें महु वयणु न सिट्ठउ । गउ भणेवि हउँ एउ करेज्जसु मुणि एत्तहि' पिय पट्ठावेज्जसु । भणिउ ताण सो मइँ बहु वारउ पुच्छिउ कहिँ गउ कंतु महारउ । तो वि न किंचि वि चवइ भडारउ थिउ तुण्हिक्कउ मयणवियारउ । ५ ता बंभणि उवरि उवसंतउ बंभणु सवणहो उवरि पलित्तउ । गंपि तत्थ जाणियपरमत्थउ पाविट्ठण तेण झाणत्थउ । वंठिन सव्वंगु वि वेड्ढेप्पिणु रिसिसिरे करिसाहारउ देप्पिणु । लाइउ सिहि वेयण विसहेप्पिण हुउ केवलि कम्माइँ हणेप्पिणु । प्राइउ सहुँ सुरेहिँ सुरसारउ थुउ भरेण गुरुदत्तु भडारउ । १० घत्ता-मुणिमाहप्पु निएप्पिणु तारिसु उवसमियो । सुणेवि पुव्वभववइयरु कविलु तवम्मि थियो ।।१९।। २० ५ गीयत्थु हवेप्पिणु विहरमाणु कालंतरेण रिउसुहिसमाणु । गउ कोंकणविसयहो विसयमुक्कु वर्ण वल्लरु लाएप्पिणु नियत्तु । मुउ डझवि साहु न चलिउ तो वि थिउ अच्चुयसग्गे सुरेंदु होवि । ता तहिँ विहार्ण तुंगभडु प्राउ मुणि दधु निएवि महाणुभाउ । निसि एत्थच्छंतु वि मइँ न नाउ हा किउ पाविढे साहुघाउ । निदेवि अप्पाणउ तहिँ जे जलणि मुउ पइसेवि हुउ सुरु सरिहे वलणि । तत्तो चुउ विझे वलक्खकाउ संजायउ कम्मवसेण नाउ । मारंतु पंथजणु नियवि तेण संबोहिउ अच्चुयसुरनिवेण । घत्ता-सुमरेवि पुव्वभवंतरु [तक्खणि] विरउ हुउ । ___ वर्ण डझेवि दवग्गिए जूहाहिवइ मुउ ।।२०।। १६. १ एतत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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