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४६. २०. १० ]
कहकोसु किं कारणु हयासे महुँ संवलु गेण्हेवि णाय सइरिणी।।
पइँ भुक्खाण अज्ज हउँ मारिउ तुहुँ पच्चक्ख वइरिणी ॥ घत्ता-खम कर ताण पउत्तउ मा रूसहि दइया ।
पइँ जोएप्पिणु हउँ तहिँ जाएप्पिणु अइया ॥१८॥
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एउ सुणेवि किंचि उवसंतें
भणिय भयाउल कंता कतें । किं पइँ खवणउ तत्थ न दिट्ठउ
किं तुह तें महु वयणु न सिट्ठउ । गउ भणेवि हउँ एउ करेज्जसु
मुणि एत्तहि' पिय पट्ठावेज्जसु । भणिउ ताण सो मइँ बहु वारउ
पुच्छिउ कहिँ गउ कंतु महारउ । तो वि न किंचि वि चवइ भडारउ थिउ तुण्हिक्कउ मयणवियारउ । ५ ता बंभणि उवरि उवसंतउ
बंभणु सवणहो उवरि पलित्तउ । गंपि तत्थ जाणियपरमत्थउ
पाविट्ठण तेण झाणत्थउ । वंठिन सव्वंगु वि वेड्ढेप्पिणु
रिसिसिरे करिसाहारउ देप्पिणु । लाइउ सिहि वेयण विसहेप्पिण
हुउ केवलि कम्माइँ हणेप्पिणु । प्राइउ सहुँ सुरेहिँ सुरसारउ
थुउ भरेण गुरुदत्तु भडारउ । १० घत्ता-मुणिमाहप्पु निएप्पिणु तारिसु उवसमियो ।
सुणेवि पुव्वभववइयरु कविलु तवम्मि थियो ।।१९।।
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गीयत्थु हवेप्पिणु विहरमाणु
कालंतरेण रिउसुहिसमाणु । गउ कोंकणविसयहो विसयमुक्कु
वर्ण वल्लरु लाएप्पिणु नियत्तु । मुउ डझवि साहु न चलिउ तो वि थिउ अच्चुयसग्गे सुरेंदु होवि । ता तहिँ विहार्ण तुंगभडु प्राउ
मुणि दधु निएवि महाणुभाउ । निसि एत्थच्छंतु वि मइँ न नाउ
हा किउ पाविढे साहुघाउ । निदेवि अप्पाणउ तहिँ जे जलणि
मुउ पइसेवि हुउ सुरु सरिहे वलणि । तत्तो चुउ विझे वलक्खकाउ
संजायउ कम्मवसेण नाउ । मारंतु पंथजणु नियवि तेण
संबोहिउ अच्चुयसुरनिवेण । घत्ता-सुमरेवि पुव्वभवंतरु [तक्खणि] विरउ हुउ ।
___ वर्ण डझेवि दवग्गिए जूहाहिवइ मुउ ।।२०।।
१६. १ एतत्ति ।
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