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________________ ५०२ ] पेच्छह जिणिदधम्महो पहाउ अट्ठारह जलनिहिजीवियंति सिरिय सेणियनिवधणाहे सिविणंतरे देवि दिट्ठ नाउ पुरि परियणेण सहुँ रइयसो हे वरिसंते विमले जले दुद्दिणम्मि की अस्थि पियाणुराउ सो अभयकुमारें चारुचित्तु सोहणदिणे जणमणजणियहरिसु सिविण गउ देविप्र दिट्ठ जेण एक्कहिँ वासरि वीरु जिणेसरु नेवि धम्मु वित्थारें संचरंतु प्राण तित्थयरहो पच्छिमदिसि दियंबरसारउ frउ श्रावणे जोयनिरोहें तन्नयराहिवेण णरसीहें तिव्वायउ विसतु नियच्छिउ संघहिँ काइँ एउ एमच्छइ Jain Education International सिरिचंदविरइयउ २१ घत्ता - वड्ढिउ जाउ जुवाणउ सयलकलाकुसलु । म पुच्छिउ पुणु वि गरिदें प्रायहो भणिउ श्रमच्चें एत्तिउ किज्जइ ता पुहईसेंसो जे उत्तउ तेण विपावियरायाएसें एत्त हे चरिय करेवि नियत्तउ २२ तिरियं वि सुरु सहसारे जाउ । पुरे रायगेहे मगहाजणंते । श्रवइन्नु उयरे नवजोव्वणा । पंचम मासे दोहलउ जाउ । रुहेवि दुर चलमहुय रोहे | महउच्छवेण गंपिणु वर्णामि । चिताविउ तं णिसुणेवि राउ । पूरविउ सरेप्पणु खयरु मित्तु । उप्पन्नउ धन्नउ पुन्नपुरिसु । किउ गयकुमारु तो नामु तेण । व रूवे जिणेसरपायपोमभसलु ।।२१।। घत्ता - एहु अणाहु समीरे [ ४९. २१. १ आगउ गउ तं नवहुँ नरेसरु | इय दिक्ख तहिँ तेण कुमारें । गउ कलिंगविसयहो दंतिउरहो । गयकुमारु गिरिसिहरे भडारउ । पण विउ गंपिणु भव्वनरोहें । विसमवइरिदाणवन रसीदें । बुद्धदासु नियमति पपुच्छिउ । ता पच्चत्तरु पिसुणु पयच्छइ । सुठु कयत्थियउ । तेत्थच्छइ सामिय तिव्वायवे थियउ ॥ २२॥ २३ फिट्ट केम पजणु कायहो । यह सिल तावेपिणु दिज्जइ । कारावहि पडियारु निरुत्तउ । सिल तावावेवि मुक्क विसेसें । तत्थारूढउ चारुचरितउ । For Private & Personal Use Only ५ १० ५ १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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