Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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५०० ] सिरिचंदविरइयउ
[ ४६. १७. ३कहइ महामुणि नवजलहरगिरु
गोमइ नामें चंदउरिहिँ चिरु । तुहुँ पिय पारद्धियो पहाणही
होती गरुडवेय नामाणहो । पइसमीर्व परिपालियचरियही
तहिँ समाहिगुत्तहो आइरियो । ५ जीवघायमहुमंसावग्गहु
लइउ नवेप्पिणु दुग्गइनिग्गहु। एक्कहिँ दिणे धरेवि खलचित्तें
आणिय तित्तिर तुह वरइत्तें। ते तइँ मोक्कलेवि उव्वारिय
तेण वि तुहुँ पिट्टवि नीसारिय । अन्नाणेण करेवि नियाणउ ।
मुय वाविहे घल्लेवि अप्पाणउ । थिय उयरंतरम्मि ससिदित्तिह
ससिलेहर्ह पुहईवइपत्तिहे । १० घत्ता-गब्भावत्थ मायरि जीवदएक्कमइ ।
हुय तें तुह सुप्र ताए कोक्किय अभयमइ ।।१७।।
आयन्नेवि एउ महएवित्र सुमरेवि पुव्ववइयरो। लइय जिणिददिक्ख पृच्छिवि पइ पणवेप्पिणु रिसीसरो॥ गुरुदत्तो वि रज्जु सिरिदत्तहो पुत्तहो देवि संजप्रो । अमियासवीं पासे संजायउ विसयकसायभंजो ॥ मासोवासपक्खचंदायणएयंतरतवासियो । महि विहरंतु संतु भयवंतु महामइ महुरभासियो । आवेप्पिणु समीवे चंदउरिहे पुव्वुत्तरदियंतरे । रविपडिमाण कविलदियछेत्तासन्नु ठिो वणंतरे॥ कविलु वि ताम तत्थ संपाइउ पेक्खेवि नत्थि वाहणी। गउ पच्छिमहो नवरि नियछेत्तहाँ अप्पाहेवि महामुणी ॥ एत्थाइयहे एउ अक्खेज्जसु पुच्छंतियह कंतहो । भोयणु लेवि सिग्घु आवेज्जसु गउ तुह वइउ उत्तहे ।। एम भणेवि गयो खेत्तरु पइपयभत्तिराइया । तहो पिय कविल नाम मज्झना भत्तु लएवि आइया ।। पुच्छिउ आउ एत्थु हलवाहउ कहिँ गउ वरु महारो । गय घरु जाम कि पि न वि जंपइ थिउ मोणें भडारो ॥ कविलु वि वड्ड वार पहु जोइवि भुक्खातिसकरालियो। आयउ हलु मुएवि अवरहए दइयहे देंतु गालियो ।।
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