Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 626
________________ ४८. २१. ४ ] कहकोसु [ ४६१ तहो तहिँ अवत्थ तारिस निएवि निंदइ अप्पाणु रुयंति देवि । हा पडिउ हयासहे मज्झ वज्जु जा गय तणय तइँ मुवि अज्जु । जइ तुह न समीवु मुएवि जंति हा तो किं एहावत्थ होति ।। जेणाहो सि मुणि सुयणसेव तं मारमि जइ विधरंति देव । सा एम भणंति रुयंति तेण पल्लइय समागयचेयणेण। ५ जइ हउँ तुह सुउ तुहुँ महु जणेरि ता कासु' वि उवरि म करहि खेरि । परु केवलु माग निमित्तमेत्तु फलु देइ सुहासुहतरु निरुत्तु । इय भणेवि नरेंदर्हा उवरि जंति विणिवारिय देवय खउ करंति । घत्ता--जहिँ निझर सीयर सयइँ नीव जहिँ सरीरु समूवज्जमि । पुणु वि भणिय मइँ नेहि तहिँ जेम समाहिए पाण विसज्जमि ॥१९॥ १० ता मोरिय होइवि देवयाण निउ उवरि चडावेवि तुरिउ ताण । बहलुच्छलंत सीयल तुसार जहिँ निवडइ सामल कविल धार । आसासिउ तहिँ सुविसुद्धबुद्धि गउ मरेवि साहु सव्वत्थसिद्धि । हुउ अन्नहीं करे एवड्डु धीरु परिपुज्जिउ देवहिं तो सरीरु। तइयहुँ पहूइ तहिँ सामि देउ किउ लोयहिँ मन्नेवि पुन्नहेउ । ५ एत्तहे वि सहोयरि सूणवि वत्त हा माय भणंती मुच्छ पत्त । उम्मुच्छिय केम वि रायभज्ज सोयइ हा एक्कोयर मणोज्ज । हा गुणनिहि कहिँ एत्थागो सि हा पावें किह सत्ति हो सि । बलि किज्जउ नरवइ निव्वियारु किह हम्मइ महरिसि निव्वियारु । हा भायर भायर पुक्करंति खणु एक्कु वि थक्कइ न वि रुयंति।१० घत्ता-हाइ न धुवइ समालहइ न वि भुंजइ न विणोउ निहालइ । बंधुसोयवस विमणमण देवि न अप्पाणउ संभालइ ।।२०।। तावहिँ तप्पीड कायरेण मन्नाविय पिय अमुणंतएण मइँ दुन्नयवंतें किउ अजुत्तु तुह सोएँ मज्झ महंतु सोउ १६. १ ते कोसु । राएँ कोंचेण कयायरेण । हा दुज्जणवयणुब्भंतएण । लइ एक्कसि करहि पसन्न चित्तु । महु सोएँ सोयइ सव्वु लोउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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