Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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४६. १२. ७ ]
पडिनियत्तु सहसत्ति नं इला देवि वावि नीरंध
पिया
गउ खगामि नियनिल निक्किवो तहिँ जे सप्पु सम्मुच्छिमो घणे राणियाउ सुहसयनिहाणए अणसणेण जिणु सरेवि मुइयउ
निसुणेवि प्रणतवीरु निवइ पणवेष्पिणु प्रवहीणाणधरु क्खहि कहि ताउ महुं तणउ मुणिणा उत्तु अट्टेण मुउ आयनेवि इउ दूमियमणउ किं भयवं चिरभवु संभरइ भासिउ भयवंतें इत्थु विले भो भो उवरिचर नराहिवई प्रज्जवि जीवेवइ करहि मई तो एत्थावेप्पिणु पुव्वभवु
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कहको
घत्ता -एक्कहिँ दिणे सारस्सदनामु पसिद्ध जणे । साहु समागउ देववणोवमि तम्मि वणे ||१०||
थोवाउ वियावि नायवई पलिप्रोवमजीविउ लोयथुउ तखर्ण तत्थावेवि नवेवि गुरु रज्जाहिसेउ नियसुयहो किउ अजरामरु वाहासय र हिउ एत्त जत्त नंदीसरहो नायामरु निरुवमरूवसिरी
३२
११
उद्धरेवि रोसेण गुरु सिला । उवरि लालरत्ति व्व थप्पिया । मरेविट्टज्झाणेण पत्थिवो । हुयउ मिच्छ्रभावेण उववणे । पढमसग्गि सत्थयविमाणए । जलहिजीविया देव हुइयउ ।
घत्ता-ता तें तं किउ तक्खर्ण तत्थायउ उरउ । जाईसरु मुणिवयणें हुउ दुक्कियविरउ ॥११॥
१२
गउ वंदनहत्ति चारुमइ । पुच्छिउ परमेसरु मुणिपवरु । उप्पन्नु भडारा बहुगुणउ । वणे एत्थु जे अच्छइ सप्पु हुउ । गग्गरगिरु चवइ रायतणउ । संपइ सो अरुहधम्मु करइ ।
हि एउ पिणु विउले |
हा हा तुह के हाथ हुई । डज्झर संसारु विचित्तगई । सुमरेष्पिणु निच्छउ लेइ तवु ।
सन्नासु करेपिणु धीरमई । भवणामरु नायकुमारु हुउ । जाणाविवि अप्पउँ गयउ सुरु । ताणंतवीरु तवु लेवि थिउ । उ सिद्ध बुद्ध तिहुणमहिउ । निव्वत्तिवि पुज्ज जिणेसरहो । उ वंदनहत्ति मेरुगिरी ।
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