Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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४७६ ]
सिरिचंदविरइयउ
[ ४७. ६. १२घत्ता-वुड्ड नाव दहे जत्थारूढउ मुणिपरमेसरु तो वि न मूढउ ।
अविचलमणु समाहि पावेप्पिणु गउ मोक्खहो अंतयडु हवेप्पिणु ॥६॥
तह भद्दबाहु गुणगणकलिउ दूसहु सहेवि तिसभुक्खदुहं एत्थत्थि पुंडवद्धणु विसउ तहिँ बंभणु सोमसम्मु वसइ सोमसिरी ताण पुत्तु जणिउ एक्कहिँ दिर्ण रंजियजणमणउ पुरबाहिरि रत्थइँ चारुमई जा ताम जयत्तयविहुरहरे चउदहपुव्वीण चउत्थु मुणी उज्जेंतहो चलिउ संघसहिउ घत्ता-ता कोड्डेण तेण खेलंतें
चउदहवटुत्तुरुडि समारिय
मुणिवसहु मणोवलेण वलिउ । संपत्तु समाहिए सग्गसुहं । तहिँ देविकोड्डु पुरु साइसउ । तहो घरिणि सइत्तणगुणवसइ । सो भद्दबाहु नामें भणिउ । गुरुविरइयमुंजनिवंधणउ।। सहु डिभहिँ वट्टएहिँ रमइ । निव्वुइ सिरिसम्मइ तित्थयरे । गोवद्धणु नामें दिव्वझुणी । तत्थायउ भव्वलोयमहिउ । दइववसेण दियाहिवपुत्तें । नियवि मुणीसरेण मणहारिय ॥७।।
आइठ्ठ चउद्दहपुव्वधरु सुयकेवलि' सव्वहं पच्छिमउ नाणेण वियाणेवि एउ तहिं मग्गेवि पढणत्थु पयत्तु किउ काऊण सव्वसत्थत्थपडु मेल्लादेवि मायवप्पु करहो प्रावेप्पिणु संसयतिमिरहरु कमणीउ कुमारु जे चारुमई घत्ता-थेवेण जे समई सव्वाइँ वि
हुउ समग्गसुयसायरपारउ
होसइ फुडु एहु सुबुद्धिधरु । परमेसरु सुरनरनमियपउ । जाएवि जणेरि जणेरु जहिं । कयसवहें अप्पणु पासु निउ । गुरुणा पुणु पेसिउ भवणु' वडु। ५ अप्पाणउ कह व कह व घरहो । पणवेप्पिणु सिरिगुरुदिवसयरु । हुउ भद्दबाहु निग्गंथु जइ । पढियइँ तेणंगइँ पुव्वाइँ वि । पुज्जिउ मणुयामरहिँ भडारउ ।।८।। १०
गुरुगोवद्धणे चरमुत्तरए
सव्वहँ पच्छिमु दुरियहरु ८. १ सुउकेवलि। २ भुवणु ।
सुरलोउ गए। पुव्वंगधरु ।
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