Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 610
________________ ४७. ६. ११ ], कहकोसु [ ४७५ तवमाहप्पेण तिलोयथुया सव्वोसहिपाइय रिद्धि हुया । तइ वि हु मज्झत्थभाउ धरइ पडियारु न पीडियो वि करइ । घत्ता-पुणरवि सुरसहाय अच्छंतें इंदें मुणिगुणगहणु करते । निप्पिहत्तु रोयाहयगत्तहो वन्निउ सणकुमारभयवंतरे ॥४॥ निसुणेवि एउ पुणरवि अमरा प्राया ते होइवि भिसयवरा । भासिउ तुह वाहिउ अवहरहुं भयवंत सरीरु चारु करहुं । बहुवयणहिँ मुणिणा भणिउ वरा जइ सच्चउ तुम्हइँ वाहिहरा। तो महु अणाइकालेण हुया अवहरह गरुय संसाररुया । किं कीरइ इयररोयहरणु संसारु जे सव्ववाहिसरण । ५ हइ तम्मि ताहँ सयमेव हई विणु कारेणण कहिँ कज्जमई । इय भणेवि पयासिउ निययगुणु खेलोसहेण किय दिव्व तणु । भो साहु अम्हे असमत्थ परा भववाहिमहणे तुह सत्ति परा । तुहुँ परमवेज्जु जगसंतियरु भणिऊण एउ गय तियसघरु । कालेण करेप्पिणु कम्मखउ मुणि सणकुमार निव्वाणु गउ । १० घत्ता-वुड्ड नाव गंगादहु दुत्तरु पाणियपरिपूरियसोत्तरु । तो वि न धीरचित्तु मादन्नउ एणियपुत्तु समाहि पवनउ ॥५॥ पा ५ पाणंदनयर आणंदु वणी तहे पोमावइ सिरिमइ सुमइ सत्तमिय एणलंछणवयणा सा सायरदत्ते दिन्नरई सुहलक्खणु ताण तणउ जणिउ सिक्खिउ सत्थत्थइँ चारुमई एक्कहिँ दिणे तोडियजम्मरिणु आउच्छिउ पाउपमाणु तिणा पायन्निऊण निम्विन्नमई आयमधरु एयविहारि हुउ निम्मुक्ककसाउ समप्पपरु तही नंदा गेहिणि तुंगथणी । सुय जसमइ गुणवइ बुद्धिमइ । हुय एणिय नाम एणनयणा । परिणिय गब्भेसरि हंसगई। सो एणियसुउ सुहीहिँ भणिउ । जायउ जुवाणु जणजणियरई । विहरंतु पराइउ वीरजिणु । तं थोवउ भासिउ सम्मइणा । तासु जे समीव संजाउ जई । काले विहरंतु विवेयजुउ । गमणत्थिउ सुरसरिपारु परु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675