Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 613
________________ ४७८ ] घत्ता- -भद्दवाहु नामेण नवल्लउ सो परेक्कु गुरुपयसेवारइ गुरुवणें वंदेवि देवु तहो तवमाहप्पें छट्ट दिवहे वरमोयहिँ सहुँ चोज्जकरु पेक्खेपिणु एप्पिणु नीरयहं गुरुणा वि तम्मि उवप्रोगु कउ अन्नहिँ दिर्ण थीरूवेण रिसी आगउ वलेवि केमवि न थिउ निट्ठावणु भक्तिभारभरिउ जं दिट्ठ वियर्ण तं नउ रहइ भयवंत अज्जु एक्का तियए हउँ वार वार पडु जावियउ निसुणेवि एउ गुरु हरिसियउ अन्न हिँदि गुरुवयणेण पुणु aणदेवि तक्खणे तत्थ वरु तहे उच्छवेण भव्वहिँ नविउ भुंजेवि निरंतरु आउ तहिं पण वेष्पिणु वइयरु अक्खियउ एत्थेव भडारा चारु पुरु तहिँ भत्ति भव्वहिँ भाविय 3 ता भल्लउ भयउ भणेवि गुरु चइऊण समाहिप्र चत्तरउ सिरिबंबविरइयउ धत्ता - न वियाणमि सा कवण किसोयरि अवक्कल्लिय लोयविरुद्धउ १२. १ पणु । ११ Jain Education International धत्ता - इयरु विभत्तिभारसंजुत्तउ सुद्धबुद्धि भावियरयणत्तउ १२ [ ४७. १०. ११ सव्वलहुउ तद्दिक्खिउ चेल्लउ । अच्छिउ केमवि न गउ महामइ || १० | वणे भामरि देतहो संजयहो । संखो जाउ वणदेवयहे । नीसरिउ धरहे साहरण करु । विन्नविउ तेण तं गुरुपयहं । परियाणिउ जं होसइ पुरउ । देवी खडाविउ अप्पवसी । नेवि अजुत्तु अलाहु किउ । निव्वत्तियगोचारिय किरिउ । पुच्छंत हो गुरुदेवहो कहइ । वरवत्थाहरणफुरंतियए । कयसामग्गी खडावियउ । किं देवय किं माणवि खेयरि । ते न थिउ समए वि निसिद्धउ || ११ | चंगउ किउ सीसु पसंसियउ । चरि पठ्ठे गिरिधीरमणु' । तहो कट्टु निएवि रइउ नयरु । मन्नाविउ एक्कहिँ भवर्ण थिउ । अच्छा गुरु गहियाणसणु जहिं । मइँ एत्तियदियहँ न लक्खियउ । अच्छइ वणम्मि संपयपउरु । ॐ दाणविहि भुंजावियउ । थिउ अन्नहिँ दिने नियदेहपुरु । बंभुत्तरु नामें सग्गु गउ । ग्रहनिसु गुरुनिसिहिय सेवंतउ । अच्छइ तत्थ तमोमलचत्तउ ॥१२॥ १० For Private & Personal Use Only ५ १० www.jainelibrary.org

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