Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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कहको
४७. १०. १० ]
[ ४७७ भद्दबाहु रिसि एत्थ हुनो
बहुरिद्धिजुनो। ओहिणाणि तिहुवणमहिनो
संघे सहियो। गउ विहरंतु कयाइ गुरु
उज्जेणिपुरु । सिप्पासरिसामी थियो
वणे भव्वपित्रो। चंदगुत्तराएँ नमिनो
जणु उवसमियो। सहुँ रिसीहिँ चरियावसरे
पइसरिउ पुरे। तत्थ भमंतएण वियणे
एक्कहिँ भवणे । अंगणम्मि छायाबहले
मंडवहो तले। बालें बालसहावपिएँ
पालणहिँ थिएँ। भयवं जहि जाहि जाहि भणियो
गणिणा मुणियो। कहिँ अवत्तु सिसु मूढमई
कहिँ वयणगई। बारह वरिस अवरिसणउ
होसइ घणउ । दूसहदुब्भिक्खेण हया
होसइ नुपया। तेण एहु एहउ भणइ
विभउ जणइ। एउ मुणेवि' निरुत्तु मणे
गंतूण वणे। हक्कारेवि अवरण्हे तिणा
मुणि गणवइणा। जं होसइ तं नउ रहियो
संघहो कहियो। घत्ता-न दुवालसवरिसइं वरिसेसइ निरु करालु दुक्कालु हवेसइ । २०
माणुसु माणुसेण खज्जेसइ मज्झदेसु सयलु वि नासेसइ ॥६॥
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१०
५
पुन्नाउसु जावि किं करमि
एत्थु जे सकज्जु हउँ अणुसरमि । तुम्हे वि जाह सव्वे वि तहिं
जलहिहे सामीवण देसु जहिं । निसुणेवि एउ निम्विन्नमई
नवु चंदगुत्तु संजाउ जई। तहिँ समग्र सीसु गुणमणिखणिहे
दसपुव्विउ भद्दबाहुमुणिहे । नामेण विसाहसूरि सगणु
गउ दविडविसउ संपन्नजणु । रामिल्लथूलथेराइरिया ।
नियनियसमुदाएँ परियरिया। पणवेप्पिणु सुयकेवलिहे पया
तिन्नि वि जण सिंधूविसउ गया । तहुँ मज्झे एक्कु जरजिन्नतणु
नामेण समंतभदु सवणु । निज्जणवणे प्रासन्नाउखउ ।
थक्कउ' गणि सक्कइ जाहुँ नउ । मन्नार्वेवि कहमवि सपरहिउ
निच्छंतु वि संघु तेण पहिउ । ६. १ न । २ सुणेवि। १. १ थक्कइउ ।
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