Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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४७० ]
सिरिचंदविरइयउ
[ ४६. २२. ११
तहिँ ताण असेस वि परिहरेवि
चिरभवसणेहु मणे संभरेवि । गंपिणु कुबेरकंतही विसाल
सहसत्ति मयच्छिए चित्त माल । घत्ता-विज्जावलेण असेस वि समरे नराहिवइ ।
तेण जिणेप्पिणु सा सइ परिणिय जणियरइ ॥२२॥
५
.
विज्जाबलेण सोपारनाम
पुरे रज्जु करंतु मणोहिराम । सो एक्कहिँ वासरे वल्लहान
मारिउ असणीण समेउ ताए । खयरायले पोढपयंगतेउ
अलयाउरे राणउ चंडवेउ । तहो विज्जुमालि नामें पियाहे
संजायउ सुउ विज्जुल्लयाई । तत्थेव तत्ततवणीयछाय
तरलच्छि महुरमाहवियवाय। मणहरि वि मेहमालिहि खगासु
हुय तणुरुह रयबंधूपियासु । तरुणाण जणियमणवयणवेय
नामेण भणिय सा विरलवेय । एक्कहिँ दिर्ण खेयरु चंडवेउ
उज्जतसिहरु वड्डियविवेउ । वंदहुँ जिणिंदु हरिवंसकेउ
गउ विज्जुमालिपुत्तें समेउ । तं पव्वयसिहरु निएवि चारु
जायउ जाईसरु खगकुमारु। सुमरेवि मणोहरि पुवपत्ति
मुच्छिउ छड्डेप्पिणु सव्व तत्ति । घत्ता तेण तत्थ पन्नत्ती विज्जादेवि वर ।
मासोवासु करेप्पिणु साहिय पहयपर ॥२३।।
१० ।
ता तेण भणेप्पिणु पवणवेय गंतूण ताण सा पुव्वजम्मु तुहुँ आसि मणोहरि रायधीय जो विज्जुमालि विक्कममहंतु निसुणेवि एह चितंतियाहे अप्पउ पइ गोत्तु सठाउ देसु सयणेहिँ मुणेवि अणोवमाहँ अन्नोन्नसणेहें गयण काले विहरंतइ न रइरइवराई चिरवइरें ताइँ वियारिया
पट्टविय विज्ज जहिँ विरलवेय । सुमराविय भोयविलासरम्मु । एवहिँ हुय खेयरकुलि विणीय । सो तुह वरु आसि कुबेरकंतु । संजायउ जाईभरणु ताहे। बुझिउ निववइयरु निरवसेसु । किउ होहिं वि पाणिग्गहणु ताहँ। एक्कहिँ दियहम्मि नहंतराले । हिमवंतहा उवरि वहूवराई। जुज्झवि पडिसूरें मारियाइँ। १०
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