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१०. देवदारु का मेघनिबद्धपुर पर आक्रमण । वैरी का पुर से निष्कासन । पाठों
कुमारियों का स्वयंभू से विवाह । उनकी मृत्यु । पुनः अनेक कुमारियों से विवाह व उनकी भी क्रमशः मृत्यु । स्वयंभू का शोक । गौरी से विवाह का वृत्तान्त ।
एक प्रायिका को धीवर ने नदी पार उतारा। ११. धीवर के शीतल देहस्पर्श के सुख से उसी को अगले भव में पति पाने का
प्रायिका का निदान । केवट अगले भव में ज्येष्ठा का पुत्र तथा वह आर्यिका विद्युदंष्ट्र की पुत्री। क्लेश के कारण श्रावस्ती की गुफा में प्रक्षेप । चार द्विजपुत्रों द्वारा उमा-उमा ध्वनि सुनकर उसका अपने घर ले जाना व उमा
नामकरण । १२. उमा का रानी को समर्पण, उसके द्वारा पालनार्थ धात्री को । पश्चात् इन्द्रसेन
विद्याधर की पत्नी गिरिकणिका को समर्पित । यौवन तडिद्रय (विद्युद्वेग)
विद्याधर से विवाह । वैधव्य । रुद्र से विवाह । १३. रुद्र का प्रेम । ईश्वरत्व प्राप्ति । शैवशास्त्र का प्रकाशन । शवाचार्यों की दीक्षा ।
विद्याधरों की आशंका। १४. मारने के उपाय । गांधार देश के दुरंड नगर में शिरश्छेद । देश में उपसर्ग । १५, लिंग पूजा द्वारा शान्ति स्थापना का विधान ।
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संधि-३९ कडवक १, राजमुनि की कथा । भरत क्षेत्र, विदेह देश, मिथिला पुरी, मेरक राजा । दो
पुत्र पद्मरथ और नमि । राजा और नमि की प्रव्रज्या । पद्मरथ राजा। वन में अपनी छाया देखते हुए नमि को गुरु-स्त्री के प्रसंग से तपभंग की भविष्यवाणी । निर्जन वन गमन । गोविन्द नामक नट का आगमन । नटपुत्री कांचनमाला से नमि का प्रेम व विवाह । गर्भ । पूर्व समुद्र तटवर्ती
मुंडीरस्वामीपुर गमन । नाटय । राजकुमारी का प्रेमी सहित नाटय प्रेक्षण । ३. नट द्वारा सुभाषित के प्रथम चरण को सुनकर राजकुमारी का मन परिवर्तन
वनट को धनदान । एक यवती परिव्राजिका मठ का द्रव्य लेकर किसी के साथ भाग रही थी। नट के श्लोक के द्वितीय चरण से उसका भी शील भंग न करने का निश्चय । धन की पोटली नट को समर्पित । अन्य दो राजपुत्रों का श्लोक
के अन्य दो चरणों को सुनकर उन्मार्ग का त्याग व नट को धनदान । ४. धन से प्रिया को सन्तुष्ट कर तथा पुत्र उत्पन्न होने पर उसे श्मशान में छोड़
देने का उपदेश देकर नमि का पुनः गुरु समीप गमन व मुनिव्रत ग्रहण । इधर नटी को पुत्रोत्पत्ति, व पुत्रको मृदंग में रखकर श्मशान में क्षेपण । नगर के राजा का मरण । भाई-भतीजा न होने से राजगज द्वारा राजा का चुनाव । हाथी द्वारा श्मशान में जाकर उसी बालक का स्वारोहण ।
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