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२२. राजप्रांगण में जाकर मलया नाम से नाच गान । देखकर मनोहरी का जातिस्मरण । पूर्वजन्म का चित्रपट - दर्शन । पुरोहित व राजा को जानकारी । कुबेरकान्त और मनोहरी का विवाह । स्वयंवर में श्राये अन्य नरेशों पर विद्याबल से विजय ।
२३. विद्याबल से सोपारकपुर में राज्य । पत्नी सहित वज्रपात से मरण | मलकापुर
के राजा चंडवेग के पुत्र विद्युन्माली रूप में जन्म । मनोहरी का जन्म मेघमाली विद्याधर की कन्या विरलवेगा के रूप में । ऊर्जयन्तशिखर को देख विद्युन्माली का जाति-स्मरण । प्रज्ञप्ति विद्या की साधना । २४. पवनवेगा विद्या को भेजकर विरलवेगा को जाति-स्मरण कराना । विवाह । हिमवंत पर्वत पर विहार करते समय पूर्ववैरी द्वारा दोनों का वध । २५. कौशल देश अयोध्यापुरी, सागरसेन वणिक्, धनश्री सेठानी, पुत्र सिद्धार्थं के रूप में विद्युन्माली का जन्म । राजगृह के सेठ समुद्रसेन की पुत्री श्रीकान्ता के के रूप में विरलवेगा का जन्म । सिद्धार्थ और श्रीकान्ता का विवाह । विद्याधर युगल को देखकर जाति-स्मरण व प्रव्रज्या । शेष पूर्वोक्त जयवती के व्याघ्री हो पर्यन्त ।
२६. सिद्धार्थ और सुकौशल का विहार करते उसी वन में श्रागमन व व्याघ्री द्वारा भक्षण | दोनों का सर्वार्थसिद्धि स्वर्ग में गमन । व्याघ्री का सुकौशल के हाथ के लक्षण देख जाति-स्मरण, श्रात्मनिन्दा, स्वर्गगमन | सुकौशल की पत्नियों का स्वर्गवास । गंधमादन नरेश का पुत्र धाड़ीवाहन को राज्य दान व स्वयं जिन दीक्षा ग्रहण, कैवल्य व पांडुक पर्वत पर निर्वाण ।
संधि--४७
कडवक
१. परोषह सहन पर गजकुमार कथा । भरतक्षेत्र, सोरठ देश, द्वारावतीपुरी, वसुदेव और गंधर्वदत्ता का पुत्र गजकुमार । पोदनपुर का वशीकरण | स्वच्छंद विहार का वरदान । पंगुल सेठ की पत्नी मनोहरी पर श्रासक्ति । सेठ का आन्तरिक रोष । नमि तीर्थंकर का श्रागमन । गजकुमार की दीक्षा । ऊर्जयन्त पर्वत पर ध्यान | पंगुले सेठ द्वारा भूमि पर सर्वांग फैलाकर लोहे के खीलों से कीलना । मुनि का वेदना सहकर स्वर्गवास ।
२. परीषह-सहन पर सनत्कुमार चक्री कथा । सौधर्म स्वर्ग । सुरेन्द्र सभा में संगम नामक देव का श्रागमन । असाधारण देहप्रभा के सम्बन्ध में देवों द्वारा प्रश्न । इन्द्र का उत्तर-: -- पूर्वजन्म के तप का प्रभाव । प्रश्न – क्या नरलोक में अभी भी कोई ऐसा है ? उत्तर—हाँ, सनत्कुमार। जय और जयन्त देवों का अश्रद्धान व ब्राह्मण वेष में परीक्षार्थ हस्तिनापुर श्रागमन ।
उक्त देवों द्वारा चक्रवर्ती का दर्शन, अभिनन्दन व संतुष्ट होकर गमन की इच्छा । चक्री का स्नान-भूषण सहित श्रात्मप्रदर्शन का अभिमान ।
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