Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 593
________________ ४५८ ] सिरिचंदविरहयउ [ ४५. २०. ३सहुँ राएण बइठ्ठ विसाला वट्टिउ भोयणु भोयणसाला । कि उज्जोवइ दीवउ देप्पिणु चक्खुगलणु निठ्ठवणु निएप्पिणु । पुच्छिय तज्जणेरि पहुणा सइ मेल्लइ अंसु एहु किं थुक्कइ। ५ ताए पउत्तु देव दीवयसिह सहइ ण पुत्तहो पविपहरणनिह । तेणंसुयइँ सवति स विहोएँ अच्छइ एहु रयणउज्जोएँ । कमलोयरवासिय तंदुल वर जेमइ अवर कयावि न नरवर । एहु अवर चाउल मीसेप्पिणु रंधउ भत्तुवजुत्तु करेप्पिणु । तेणाघाप्रवि' आसाएप्पिणु निट्ठीवर सुउ विरसु भणेप्पिणु । १० घत्ता-जयमाला महएविवरु एहु सव्वु वइयरु' निसुणेप्पिणु । बिंभियमणु नियभवणु गउ तं सुकुमालसामि सद्देप्पिणु ॥२०॥ ता तहिँ गणहराइमुणि एप्पिणु थियउ जिणाला जोउ लएप्पिणु । गंपि सुहद्दए संजमधारिय ते पणवेवि पढेवउँ वारिय । मझुवरोहें एउ करेवउ जोग्गावहि मोणेणच्छेवउ । . तं पडिवन्नु तेहिँ थिय मोणे गय चउमास वि विणु अज्झयणे । जोयखमावणकिरिय करंतहिँ पढिउ गरुयसवें भयवंतहिँ। पायनिवि चिरभउ सुमरेप्पिणु तत्थ छलेण तेण जाएप्पिणु । मग्गिउ मुणिवउ तेहिँ न दिन्नउ अत्थि सुहद्दए सहुँ पडिवन्नउ । पुच्छिय पाउपमाणु नवेप्पिणु गय ते तिन्नि दिणाइँ कहेप्पिणु । ता तव सइँ सइँबुधु लएप्पिणु थिउ आहारु सरीरु मुएप्पिणु । तहिँ अच्छंतु संतु सवसेज्जइ भल्लुकिए चिरभवभाउज्जइ। ०१ अइभुक्खियण भमंतिण लद्धउ चिरवइरेण सपुत्तिए खद्धउ । तारिसु दूसहु दुक्खु सहेप्पिण परदेहु व नियदेहु गणेप्पिणु । घत्ता--मरिवि समाहित धीरमणु उक्किट्ठाउ सुनिरुवमकायउ । नलिणगुम्मे सुरहरि पवरे अच्चुयम्मि सुरवरु संजायउ ॥२१॥ २२ धन्नो परेको जए साहु सुकुमालु को करइ किर एव अवरो महाकालु । इय देवघोसं सुणेऊण तहि माय । सहुँ पुत्तपत्तीहिँ रोवंति तत्थाय । २०. १ किउ। २ तेण साएवि। ३ जए माला। ४ एहु पउ एउ.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .

Loading...

Page Navigation
1 ... 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675