Book Title: Kahakosu
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 587
________________ ४५२ ] सिरिचंदवियां [ ४५. ७. ६मणपज्जयनाणेण मुणेप्पिणु भणिउ सुज्जमित्तण सुणेप्पिणु । एहु सो तुज्झ सहोयरु भायरु वाउभूइ जिणमुणिनिंदायरु। हुउ खरि सूयरि कुक्कुरि भीसण पुणु मायंगि एह दुईसण । ता सा अग्गिभूइभयवंतें संबोहिय करुणावरचित्तें । घत्ता--सुणिवि पुव्वभउ उवसमिय पालिवि सावय [-वय] कालें मुय । १० तेत्थु जि रायपुरोहियहो नायसम्मनामीं हूई सुय ॥७॥ गर्भ तिवेइयाहे उप्पन्नी नायसिरी नामेण रवन्नी। एक्कहिँ वासरि नियसहियहिँ सहुँ गय नायवणही नाय नमंसहुँ । तहिं नायालए सुछुडु पाएँ दिट्ट स गुरुणा चिरभवभाएँ। पेच्छिवि सहस समागयपणए। पुच्छिउ सुज्जमित्तु गुरु विणएँ । तेण वि कहिउ भाइ तुह केरउ जो चिरु वाउभूइ विवरेरउ । सो रासहि सूयरि साणप्पिय होवि हुय चंडालि सुदुक्किय । एत्थु जि नयरि पासि संबोहिय जा पइँ पाउ करंति निरोहिय । सा सावयवएण संथा इय एह पुरोहियसुय संजाइय । ता सा सूरमित्तमुणिभासिउ सुणिवि एउ चिरभवदुव्विलसिउ । जाइंभरि दूरुज्झियदुक्किय हुय साविय सम्मत्तालंकिय । १० घत्ता-सूरमित्तमुणिणा मुणिवि सिक्खविया सुप्र एउ करेज्जसु । जइ छड्डाविज्जहिं वयइँ तो प्राणेप्पिणु महुँ अप्पेन्जसु ॥८॥ एउ करेमि भणेप्पिणु भवणही ... प्रायन्नेवि वत्त अहिसम्में अम्हइँ लोगुत्तम मलवज्जिय अम्हइँ परकरणिउ वेउत्तउ । एउ सुणेप्पिणु कन्नण भासिउ तो तासु जि अप्पहुँ में दिन्नउ चल्लिउ धीय लेवि आरामहो पेच्छिवि पंथि पडहु वज्जंतउ नायसिरीण जणेरु पउत्तउ गय सा पय पणवेप्पिणु सवणहो । भणिय पुत्ति पालियछक्कम्में । बंभणवन्न जे? जगपुज्जिय । छड्डहि खवणयधम्मु अजुत्तउ । जइ खवणयवउ अम्हहँ दूसिउ । एहि ताय ता तें पडिवन्नउ । पासु मुणिंदहो निज्जियकामहो । बद्धउ पुरिसु एक्कु निज्जतउ। एहु रूवजोव्वणगुणजुत्तउ । ५ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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