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३२. नागदत्त का प्रच्युतेन्द्र देव होकर संबोधन तथा नागवसु का मेदार्य की पत्नी
होकर प्रायिका व्रत । कौशाम्बी नरेश का मुनिव्रत व मेदार्य का मोक्ष ।
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१. निवान का कुफल-उग्रसेन-वसिष्ठ कथा। सूरसेन जनपद, मथुरा नगरी,
उग्रसेन नरेश, रेवती रानी, सेठ जिनदत्त, दासी प्रियंगुश्री, कालिंदीतट पर वसिष्ठ तपस्वी। एक पैर पर ऊर्ध्वबाहु, तथा ग्रीष्म में पंचाग्नि तप ।
जटाजाल । जन-पूजा। २. पनिहारियों की प्रियंगुश्री के ऋषि की वन्दना न करने पर आपत्ति और उसका
कामकाज की व्यवस्था का बहाना । एक दिन सब का उससे आग्रह । ३. दासी का अस्वीकार । ऋषि की जिनदत्त के विरुद्ध राजा से शिकायत व दासी
से राजा की पूछताछ। ४. प्रियंगुश्री द्वारा तथ्य निवेदन । ५. वसिष्ठ द्वारा ब्रह्मा का पुत्र व पंडित व तपस्वी होने पर भी मछुए होने का
दासी का अनुचित आरोपण । दासी द्वारा पंचाग्नि द्वारा जीवघात व जटाओं द्वारा मत्स्य घात का निवेदन । जटामों को झड़ाने से मत्स्यपात द्वारा प्रियंगुश्री की बात का प्रमाणीकरण । राजा का धार्मिक श्रद्धान । वसिष्ठ मुनि का वाराणसी के समीप गंधवती और गंगासंगम के तीर्थ पर तप। दिव्यज्ञानी वीरभद्र का पांच सौ मुनियों
सहित आगमन । ७. एक मुनि द्वारा वशिष्ठ के तप की प्रशंसा तथा संघपति का तप में दोषारोपण
व जलते काष्ठ में सर्प का सद्भाव-प्रदर्शन । वसिष्ठ का अहिंसा धर्म में
श्रद्धान। ८. वसिष्ठ का व्रत-पालन किन्तु भिक्षा की दुष्प्राप्ति ।
वसिष्ठ मुनि का एक विहारी होकर मथुरागमन । गोवर्धन पर्वत पर उग्रतप से देवताओं का प्रकम्पन व प्रेषण की याचना । मुनि की निस्पृहता । सर्वजन प्रसिद्धि । मासान्तर से भोजन । राजा द्वारा स्वयं भोजन कराने की इच्छा से
दूसरों द्वारा प्राहारदान का निषेध । १०. मास मास के अन्तर से आहार की भिक्षार्थ भ्रमण । राजा के निवारण से प्रजा
द्वारा प्राहारदान का अभाव व स्वयं राजा का अन्य राज्य कार्य में व्याकुलता के कारण अनवधान । ऐसा तीन बार हुआ । गोवर्धन पर आकर देवियों का चिन्तन व राजा के वध का आदेश । देवियों द्वारा अस्वीकार।। मुनि का निदान । उग्रसेन की रानी पद्मावती के गर्भ में जन्म । राजा के हृदय का रुधिर पीने की इच्छा रूप रानी का दोहला । किसी प्रकार दोहले की पूर्ति । पुत्र जन्म । रुद्ररूप ।
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