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भय की आशंका से कांस्य की मंजूषा में रखकर कालिंदी में प्रवाहित | कौशाम्बी की कलारिन द्वारा प्राप्ति । कांस्य मंजूषा में मिलने से कंस नामकरण । उपद्रवी जानकर घर से निष्कासन । गौरीपुर जाकर वसुदेव का शिष्यत्व, शिक्षा व गुरु से वरदान प्राप्ति । उधर जरासंध का प्रभुत्व व पोदनाधीश से विरोध । १३ : शत्रु को पराजित करने वाले को इच्छित राज्य व राज्यकन्या जीवंयशा के दान की घोषणा । वसुदेव का जाना व कंस द्वारा पोदनाधीश पर विजय प्राप्ति । १४. शत्रु को बांधकर जरासंध के सम्मुख प्रस्तुत । वसुदेव का सच्चे विजेता कंस को कन्या देने का प्रस्ताव । कुल पूछने पर कंस का आत्म निवेदन - कौशाम्बी से माता व मंजूषा का आनयन तथा परीक्षण |
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१५. राजपुत्र जानकर कन्या से विवाह व इच्छित देश मांगने का वरदान । मथुरापुरी मांगकर कंस का आक्रमण व उग्रसेन भौर पद्मावती का कारावास । कंस के लघु भ्राता प्रतिमुक्तक की प्रव्रज्या व अष्टांग-निमित्त ज्ञान की प्राप्ति । गुरु वसुदेव का सम्मान व देवकी नामक भगिनी से विवाह ।
१६. देवकी के गर्भाधान का महोत्सव । प्रतिमुक्तक साधु से जीवंयशा का विनोद । साधु द्वारा रोषपूर्वक पुत्र से पति के मारे जाने की भविष्यवाणी । १७. साधु की पुत्र द्वारा देवकी के पिता के मारे जाने की भविष्यवाणी । देवकी की कंस को सूचना और उसका वसुदेव से वर मांगना कि देवकी का जो पुत्र हो वह वैरी होने से मार डाला जाय ।
१८. देवकी का दुख । वसुदेव द्वारा सान्त्वना । साधु से मथुरेश को दिया वरदान मिथ्या करने के उपाय का प्रश्न । देवकी के हाथ से वृक्ष की शाखा छूटने से एक आम्रगुच्छ आकाश को गया व एक नीचे गिरा । निमित्त विचार कर साधु ने बतलाया कि देवकी के तीन युगल ( छह ) पुत्रों का नैगम अपहरण करेगा । भद्रिलपुर में उनका पालन होगा और वे तपकर मोक्षगामी होंगे । १६. सातवां पुत्र गोकुल में पाला जायगा तथा वह कंस और जरासंध का वध कर राज्य पावेगा । तदनुसार वृत्तान्त | सातवें पुत्र लक्ष्मीपति नारायण का जन्म | भादों कृष्ण अष्टमी को पिता द्वारा अपहरण, बलदेव द्वारा छत्र धारण, देव द्वारा धवल वृषभ के रूप में यमुनाप्रवाह में मार्ग निर्माण, पार होकर दुर्गा के मंदिर
निवास । वहाँ नन्द की पुत्री लेकर श्रागमन व उसे छोड़ वासुदेव को लेकर निर्गमन : वसुदेव और बलदेव का लोटना । प्रातः कंस को सूचना ।
लूट में सिद्धि होने पर
सफल होकर बची
२१. पुत्री देख, नाक चपटी व कुबड़ी करके भूमिगृह में रक्षण । युवती होकर तपग्रहण | विन्ध्याचल गमन व प्रतिमायोग । भिल्लों द्वारा पूजा की प्रतिज्ञा । व्याघ्र द्वारा भक्षण | भीलों का लूट हुई हाथ पैर की अंगुलियों और रुधिर का दर्शन २२, भिल्लों द्वारा पूजा । वहां काष्ठ की प्रतिमा विन्ध्यवासिनी दुर्गा के नाम से स्थापना । उधर गोकुल में कृष्ण की वृद्धि व कंस के अपशकुन । नैमित्तिकों द्वारा नंद की गोशाला में वैरी होने का संकेत । देवियों द्वारा कृष्ण के वध का प्रयत्न ।
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