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( ३ ) २३. पूतना, रिष्ट, यमलार्जुन, स्यंदन, वृषम व घोड़ों तथा कालिय नाग का मर्दन ।
गोवर्धन का उद्धरण, चाणूर का विदारण, कंस का वध, उग्रसेन का राज्याभिषेक व जरासंध का वध करके कृष्ण का रत्ननिधि व अध-चक्रवर्तित्व प्राप्ति ।
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संधि-४३ कडवक १. अभिमान के दुष्परिणाम पर लक्ष्मीमती की कथा-मगधदेश, लक्ष्मीग्राम, सोमदेव
द्विज, लक्ष्मीमति पत्नी । पक्षोपवासी समाधिगुप्त मुनि का गोपुर प्रवेश । द्विज द्वारा पड़िगाहन । लक्ष्मीमती द्वारा अपना शृंगार करते समय मुनि की निन्दा ।
मुनि का गमन । लक्ष्मीमती को कुष्ठव्याधि । निर्वासन । ___ जन्मान्तर क्रमशः खरी, शूकरी, श्वान । तत्पश्चात, लाटदेश में रेवातट पर,
भरुकच्छ के समीप, अंधलक ग्राम में तीव्रमद धीवर की मंडूकी नामक भार्या से दुर्गधिनी, कुरूप, कनिया नामक कन्या । दुर्गन्ध से त्रस्त कुटुम्बीजनों द्वारा अलग कुटी में वास । नौका द्वारा नदी पार उतारने का व्यवसाय । समाधिगुप्त मुनि का आगमन । शीतकाल में मुनि के वैयावृत्य से पाप का शोधन । मुनि
द्वारा उसे पूर्वकाल में कहीं देखने की सूचना । ३. मुनि से पूर्ववृत्तान्त सुनकर आर्यिका व्रत ग्रहण । सोपारकपुर को विहार ।
एकान्तर उपवास ग्रहण व बारह वर्ष तक कंजिका प्राहार । मरकर अच्युतेन्द्र की देवी हुई । पुनः कुंडिनपुर के रूप्यरथ राजा की रुक्मणी नामक पुत्री हुई । शिशुपाल को मार कर गोविन्द द्वारा परिणय । प्रद्युम्न का जन्म निदान के कारण पतन पर चित्त-संभूत कथा-वाराणसी का सुषेण नामक किसान, गांधारी पत्नी । चित्त और संभूत नामक दो विद्वान् । देशभाषाओं में प्रवीण पुत्र । नर्तक होकर राजगृह आगमन । संभूत का स्त्रीवेष में नृत्य । वशुशर्मा पुरोहित की कामासक्ति । पुरुष जानकर भगिनी श्रीमती का विवाह । नटों का कुसुमपुर गमन । धर्म श्रवण । दिगम्बर मुनि-व्रत ग्रहण । पुनः राजगृह प्रागमन । वसुशर्मा को देखकर संभूत का पलायन वसुशर्मा का अनुधावन । मनि के कोप से नगर में अग्निप्रकोप । वृत्तान्त जानकर चित्त का आगमन व
भ्राता तथा अग्नि का उपशामन । ५. मुनियों की वनदेवी द्वारा चक्रेश्वर के रूप में सेवा । संभूति का निदान । स्वर्ग
वास के पश्चात् पांचाल देश के काम्पिल्य नगर में ब्रह्मदत्त नामक बारहवें चक्रवर्ती के रूप में जन्म वसुशर्मा का उसके रसोइये के रूप में जन्म । भोजन के प्रसंग से सूपकार का वध । व्यंतर योनि । प्रपंच रचकर चक्रवर्ती का अपनयन
व वध । ये निदान के दुष्परिणाम । ६. माया शल्य के कुफल पर पुष्पदन्ता को कथा-भारतवर्ष, आर्यावर्त, पुष्पदन्तचूड़
राजा, पुष्पदन्ता रानी । देवगुरु नामक कृषि का आगमन । राजा का धर्म श्रवण व प्रव्रज्या । रानी की भी प्रव्रज्या। राजा का मोक्षगमन । रानी का अभिमान व विनय में मायाचारी, प्रात्म प्रशंसा व शरीर संस्कार ।
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