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( ७६ )
में स्वप्रतिबिम्ब अवलोकन से गुरु की भविष्यवाणी । महिला के निमित्त से मृत्यु । स्त्री रहित स्थान में तप करने का विचार ।
३.
निर्जन वन में तपस्या | वनदेवियों द्वारा श्राहारदान । साथी के साथ गंगदेव नट व उसकी पुत्री मदनवेगा का श्रागमन | देखकर मुनि का अनुराग । नटी से मुनि का विवाह । श्रहिच्छत्रपुर आगमन । गुरु की शिष्यों द्वारा निन्दा व सुधारने का प्रयत्न । मुनि का आग्रह | राजगृह गमन । राजा श्रेणिक के सम्मुख नाट्य प्रदर्शन ।
४. विद्याधर युगल का दर्शन व पूर्वभव-स्मरण । विद्याधर के रूप में लंखिया विद्याधरी पर आसक्ति । विद्या-सिद्धि की मर्यादा ।
२.
६. महिलासक्ति के दोष पर गौरसंदीप मुनि की कथा । भरत क्षेत्र, कुसाल जनपद श्रीवस्तीपुरी, द्वीपायन राजा । वसंत ऋतु । वनक्रीड़ा। राजा द्वारा आम्रवृक्ष की मंजरी का कर्णावतंस । सभी का अनुकरण । वृक्ष का आमूल विनाश । राजा द्वारा क्षणभंगुरता का बोध । पुत्र को राज्य देकर तप ग्रहण | गुरुसंघ सहित उज्जयिनी गमन । मुनिगिरि के शिखर पर गुफा में एकांतवास । संघ में प्राचार्य की उस दिन नगर में जाने वाले के महाव्रत भंग की भविष्यवाणी ।
गुरु वाणी को न जानते हुए द्वीपायन मुनि का भिक्षार्थ नगर प्रवेश | अन्तःपुर में तनुसुन्दरी विलासिनी की ईर्ष्या से रानी द्वारा अंगुष्ठ छेदन । घाव में पीव । राजा की उससे विरक्ति ।
७.
मर्यादा पूर्ति पर विवाह । तपग्रहण | स्वर्गगमन व शिवभूति-पुत्र के रूप में जन्म | लंखिया का पुनर्जन्म मदनवेगा के रूप में । नाट्य का त्याग । विद्यानों की पुनः प्राप्ति | सबका विस्मय । तप । वराड विषय की वेन्नातटपुरी में जाकर मोक्ष |
5.
६. तनुसुन्दरी का निष्कासन व अंगुष्ठ पर सुवर्णखोल चढ़ाकर वेश्यावाटक में निवास । राजा द्वारा परिखा निर्माण का कार्य । द्वीपायन मुनि का श्रमदान निमित्त अवरोध । तनुसुन्दरी के घर प्रहार | जलवाहिनी विद्या के बल से परिखा में अथाह जल । मुनि द्वारा अपने निवास में शिलातल पर तनुसुन्दरी का चित्र लेखन ।
१०. परिखा के जल से नगर में पूर । राजा की मुनि से प्रार्थना । तनुसुन्दरी का वचन मुनि को मान्य । राजा द्वारा उसका अर्पण । द्वीपायन के पुत्र द्वारा नगर निरोध | मुनि द्वारा निवारण |
११. तनुसुन्दरी को मुनि को प्रसन्न रखने का राजादेश । राजा द्वारा रत्न जटित उपानहों की भेंट | तनुसुन्दरी को पहनाते समय पके अंगूठे को देख मुनि की विरक्ति ।
१२. मुनि का पश्चाताप । विमलचन्द्र मुनि से पुनः तपग्रहण । किन्तु तनुसुन्दरी का पुनः संस्मरण । गुरु का संबोधन । तथापि मोह का प्रभाव । उधर तनुसुन्दरी द्वारा राजा के रोष के भय से श्रात्मघात ।
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