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राजा सिंहसेन को श्रीभूति ने नाग होकर डसा प्रौर स्वयं तियंच योनि में चमर मृग हुआ । हस्ती को कुक्कुट सर्प ने मारा और वह श्रीधर देव हुआ । धम्मिल्ल पुरोहित मरकर वानर हुआ और उसने कुक्कुट सर्प को मारा जो नरक गया । शृगाल भिल्ल ने उक्त हाथी के दांत और मोती वणिक् को और उसने पूर्णचन्द्र राजा को दिये, जिसने उनका मंच और हार बनवाये ।
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यह वृत्तान्त सुनकर रामदत्ता सिंहपुर गई और पुत्र को संबोधन किया । उसने श्रावकव्रत लिये । यथासमय मरण को प्राप्त हो सहस्रार स्वर्ग में सुन्दरदत्त नामक देव हुआ । रामदत्ता वहीं सूर्यप्रभ नामक देव हुई एवं सिंहचन्द्र उपरिम ग्रैवेयक में श्रहमेन्द्र हुआ ।
जंबूद्वीप, भरतक्षेत्र, वैताद्यगिरि की दक्षिण क्षेणी में तिलक नगर ।
१७. वहाँ के विद्याधरेन्द्र अतिबल, पत्नी सुलक्षणा के वह सूर्यप्रभ देव श्रीधर तनया के रूप में उत्पन्न हुआ । उसका विवाह अलकापुर नरेश सुदर्शन से हुआ । सुन्दरदत्त देव उसकी यशोधरा पुत्री हुई जिसका विवाह प्रभासपुर के सूर्यावर्त विद्याधर से हुआ । उसके गर्भ से श्रीधर नामक देव रश्मिवेग नामक पुत्र हुआ । उसे राज्य दे सूर्यावर्त मुनिचन्द्र से दीक्षित हुआ ।
श्रीधरा और यशोधरा द्वारा तप-ग्रहण ( रश्मिवेग को सिद्धकूट में हरिश्चन्द्रमुनि का दर्शन और प्रव्रज्या । उक्त श्रार्याओं का उसकी वन्दना के लिए कांचन गुफा गमन । वहाँ उस कुक्कुट, सर्प, अजगर द्वारा उन तीनों का दर्शन, मरण व कापिष्ठ स्वर्ग श्रारोहण । अजगर पंकप्रभ नरक गया और सिंहचन्द्र हमेन्द्र हुआ ।
१६. चक्रपुरी के राजा अपराजित, रानी सुन्दरी, पुत्र चक्रायुध, पत्नी चित्रमाला | सिंहसेन का जीव जो हाथी, फिर श्रीधर देव, फिर, रश्मिवेग और फिर सूर्यप्रभदेव हुआ था, यह आकर चक्रायुध और चित्रमाला का पुत्र वज्रायुध हुआ । तथा जो श्रीधरा कापिष्ठ स्वर्ग गई थी, वह पृथ्वीतिलक के प्रतिवेग राजा और प्रियंकर रानी की पुत्री रत्नमाला हुई । उसका विवाह वज्रायुध से हुआ । २०. यशोधरा का जीव स्वर्ग से आकर वज्रायुध और रत्नमाला का पुत्र रत्नायुध हुआ । वज्रायुध को राज्य देकर चक्रायुध मुनि हो मोक्ष गया । रत्नायुध को राज्य दे वज्रायुध भी मुनि हुआ । रत्नायुध का राजहस्ती जाति-स्मरण कर खानपान छोड़ बैठा । राजा ने चिंतित हो वज्रदन्त मुनि से कारण पूछा। मुनि द्वारा पूर्वभवकथन - चित्रकार पुरी का राजा प्रीतिभद्र, रानी सुन्दरी, पुत्र प्रीतिकर जो मंत्रिसुत चित्रमति सहित मुनि हुआ ।
२१. दोनों मुनि विहार करते साकेत श्राये । वहाँ बुद्धिसेना गणिका पर मोहित हो चित्रमति रसोइया हो गया । उसने माँस रस खिलाकर राजा को प्रसन्न किया तथा उस वैश्या से और धन पाया । वह मरकर तमःतम नरक गया व संसार में भ्रमण कर तेरा हाथी हुआ । हमको देख उसे जाति स्मरण हो श्राया व उससे पापों का का परित्याग किया। सुनकर रत्नायुध श्रावक हुन । जो अजगर पंकप्रभ नरक गया था, वह 'श्रतिदारुण' नामक शबर हुआ ।
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