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१६. गुप्तचरों द्वारा करकंडु को प्रचंड प्राक्रमण की सूचना । १७. करकंडु की समर घोषणा । सुभटों की तैयारी। १८. भटों की अपनी पत्नियों से दर्पोक्तियाँ । १६. भट-पत्नियों द्वारा विदाई । सबल सैन्य सहित राजा का निर्गमन । २०. दोनों सेनाओं का संघर्ष । पद्मावती का आकर पिता-पुत्र की पहिचान कराना। २१. पिता-पुत्र का प्रालिंगन । सबके द्वारा पद्मावती की स्तुति । २२. करकंडु का चम्पापुर गमन व राज्याभिषेक का उत्सव । पिता की मुनि दीक्षा । २३. कैलास पर्वत पर योग साधना और मुक्ति। करकंडु की सभा में गुप्तचर का
आगमन । २४. गुप्तचर का सन्देश । दक्षिणापथ के चोल चेर और पांड्य नरेशों द्वारा करकंडु
की प्रभुता अस्वीकार | दूत-प्रेषण । उक्त नरेशों की जिनेन्द्र को छोड़ अन्य किसी को प्रणाम न करने की प्रतिज्ञा। करकंडु का प्रकोप व द्रविण देश पर
प्राक्रमण । २५. करकंडु का द्रविण नरेशों से संग्राम । तीनों द्रविण राजाओं का बन्दीकरण । २६. हुंकार सहित वामपाद से सिर पर प्रहार करते समय सिर पर जिनमूर्ति का
दर्शन । करकंडु का पश्चाताप व राजानों की मुक्ति । उनका पुत्रों को राज्य देकर तप ग्रहण ।
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सन्धि १८ कडवक
पृष्ठ १. दक्षिण विजय से लौटकर तेरापुर में प्रावास ।
२०० २. तेरापुर के भिल्ल नरेश शिव का प्राकर करकंडु को नमन व सहस्त्र-स्तंभ
जिनालय व उसके ऊपर एक वामी का श्वेत हाथी द्वारा पूजन का प्राश्चर्य कथन । २०० ३. करकंडु का गमन, जिनालय-वंदन, वामी के हाथी द्वारा पूजन का चमत्कार
दर्शन, स्वयं वामी का पूजन व वामी के रहस्योद्घाटन पर्यंत उपवास ग्रहण । रात्रि के पश्चिम याम में नागदेव का आगमन व वृत्तान्त कथन । दशानन वंशी सूर्य देव विद्याधर द्वारा पूदि नामक गिरि पर चौबीसों तीर्थंकरों की प्रतिष्ठा । अमितवेग-सुवेग विद्याघरों का आगमन व प्रतिमा-दर्शन ।
२०१ ५. अमितवेग का पार्श्व प्रतिमा को लेकर वहां (तेरापुर) तक पाना व पर्वत
पर प्रतिमा रखकर जिनालय की वंदना करना । पुनः उठाने पर प्रतिमा का न उठना । निराश होकर वहीं मंजूषा में रखकर तेरापुर के सहस्त्र-कूट मंदिर में यशोधर मुनि का दर्शन । मुनि द्वारा वहीं विशाल जिनालय बनने की भविष्यवाणी सुन दोनों भ्राताओं की मुनि दीक्षा।
२०२ सुवेग का मिथ्यातप। मरकर श्वेत हाथी की पर्याय । अमितवेग का देव होना व पाकर हाथी को जाति-स्मरण कराना तथा जब तक कोई प्रतिमा का उद्धार न करे तब तक पूजन करने का उपदेश ।
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