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जीवन विज्ञान : आधार और प्रक्रिया
शरीर तंत्र का प्रशिक्षण
व्यक्ति का संचालन तन्त्र के द्वारा होता है । प्रत्येक कार्य की निष्पत्ति के लिए एक सशक्त तंत्र अपेक्षित होता है। प्रत्येक मनुष्य के साथ कार्य संचालन के लिए एक तंत्र है और उसमें चार तत्त्व काम कर रहे हैं - शरीर, श्वास, वाणी और मन। ये चारों साधक भी बनते हैं और बाधक भी, विकास के हेतु भी बनते हैं और अवरोधक भी। यदि इन्हें शिक्षित कर लिया जाता है तो ये साधक बन सकते हैं, अशिक्षित रहते हैं तो बाधक भी बन जाते हैं। प्रश्न है अभ्यास देने का, शिक्षित करने का।
शरीर का महत्वपूर्ण भाग है- नाड़ी - संस्थान, मस्तिष्क और पृष्ठरज्जु । हमारे शरीर में दो ध्रुव हैं। ऊपर का ध्रुव है - मस्तिष्क और नीचे का ध्रुव है - रीढ़ की हड्डी का निचला सिरा । मस्तिष्क चेतना का विकिरण करता है और पृष्ठरज्जु का निचला हिस्सा शक्ति का विकिरण करता है। एक शक्ति के संग्रह का अमोघ साधन है, दूसरा चेतना के संग्रह का ।
हमारे जीवन में चेतना और शक्ति ये दो महत्वपूर्ण तत्त्व हैं। दोनों को दो ध्रुव संभाले हुए हैं। एक ध्रुव है - मस्तिष्क या ज्ञान केन्द्र और दूसरा ध्रुव है - शक्तिकेन्द्र | इनका संतुलित विकास होता है तो हमारी प्रवृत्ति का संचालन बहुत सहजता और सरलता से होता है।
सेतु है श्वास
दूसरातत्त्व है - श्वास । श्वास का मूल्यांकन बहुत कम हो पाया है। वस्तुतः वाणी, मन और नाड़ी संस्थान- इन सब में प्राण का संचार करने का माध्यम बनता है - श्वास । श्वास एक महत्वपूर्ण तत्त्व है जो बाह्य जगत् में भी रहता है और अन्तर्जगत् में भी रहता है। बाहर आता है और फिर भीतर जाता है। बाह्य और अन्तर् - दोनों के बीच सेतु बना हुआ है हमारा श्वास । श्वास की प्रक्रिया बहुत छोटी लगती है, किन्तु बहुत महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। श्वास के
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