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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग पिनियल निष्क्रिय होती है तब उसकी नियन्त्रण की शक्ति कम होती है और बालक अनेक बुराइयों का शिकार हो जाता है। यह वैज्ञानिक दृष्टि की बात है। अब हम इस पर योगदृष्टि से विचार करें। कामवृत्ति का केन्द्र है- नाभि से गुदा तक का स्थान, उपस्थ का स्थान। यह अपान का स्थान है। जब अपान पर प्राण का नियन्त्रण रहता है तब वृत्तियां शांत रहती है। जब अपान पर प्राण का नियन्त्रण कम हो जाता है तब अधोगामी वृत्तियां सक्रिय होने लगती हैं।
__यदि हम तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि विज्ञान की भी वही निष्पत्ति है और योग की भी वही निष्पत्ति है। दोनों की निष्पत्ति एक है।
दीर्घश्वास से अपान पर नियन्त्रण साधा जाता है। यदि विद्यार्थी को इसका सम्यग् अभ्यास करा दिया जाता है तो वह प्रारम्भ से ही बुरी आदतों में नहीं फंसेगा। वह बुराइयों से बच जाएगा।
एक प्रश्न आता है- बुरे विचार बहुत आते हैं, उन्हें रोकने का क्या कोई उपाय है ?
इसका सीधा-सा उपाय है- दस मिनिट तक दीर्घश्वास का प्रयोग। एक मिनिट में दो श्वास लें, समस्या हल हो जाएगी। जब-जब बुरे विचार, निम्न वृत्तियां, वासनाएं आक्रमण करती हैं तब तक दीर्घश्वास का प्रयोग कर इनको रोका जा सकता है।
संवेदन-नियन्त्रण का एक उपाय है- प्राणकेन्द्र पर ध्यान करना, यानी नासाग्र पर ध्यान करना। नाक का वासनाओं के साथ गहरा संबंध है। कान
और नाक का विकारों के साथ सम्बन्ध है। मस्तिष्क का एक भाग है- एनिमल ब्रेन। इसी के कारण मनुष्य में पाशविक वृत्तियां उभरती हैं। उसका संबंध नाक
और इंद्रियों के साथ है। प्राचीन आचार्यों ने इसका अनुभव किया और इस पर विजय पाने के लिए उन्होंने नासाग्र पर ध्यान करने की बात कही। भगवान् महावीर की ध्यानमुद्रा में दोनों आंखें नाक पर टिकी देखी जाती है। नई दिशा
हम किसी भी दृष्टि से सोचें- बौद्धिक विकास के लिए या भावनात्मक विकास के लिए, जीविका की सफलता के लिए या सह-अस्तित्व की सफलता के लिए, हमें संवेदों पर नियंत्रण करना होगा। यह एक उपाय है। अनुपाय कुछ भी नहीं है। जिसके पास उपाय नहीं है, वह हजार प्रयत्न करने पर भी सफल
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