Book Title: Jivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 231
________________ २१४ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रायोगिक अभ्यास तृतीय : यौगिक क्रियाएं स्वाभाव परिष्कार के लिए मेरुदण्ड की क्रियाएं मेरुदण्ड शरीर में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग है। मेरुदण्ड का लचीलापन स्वस्थता का लक्षण है । स्वस्थ व्यक्ति का मेरुदण्ड सीधा और लचकदार होता है। मेरुदण्ड के पार्श्व में ईड़ा, पिंगला आदि सहस्रों नाड़ियां होती हैं । मेरुदण्ड सुदृढ़ होने से व्यक्ति की चेतना को विकसित होने का अवसर मिलता है। मेरुदण्ड की लचक केवल स्वास्थ्य के लिए ही वरदान नहीं है, अपितु वह सुन्दर स्वभाव और साधना की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। ये क्रियाएं सरल सहज लगती हैं। सहज लगने वाली क्रियाएं ही जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करती हैं। मेरुदण्ड की सुघड़ता को लक्ष्य कर इन क्रियाओं का चयन किया गया है। मेरुदण्ड की स्वस्थता स्मृति, विचार, चिन्तन और स्वभाव को प्रभावित करती है। स्वाभाव, विचार और चिन्तन के परिष्कार के लिए मेरुदण्ड की क्रियाओं पर ध्यान देना आवश्यक है। ___ मेरुदण्ड के अन्तिम छोर पर शक्ति केन्द है और मस्तक की चोटी के (ऊपर) स्थान पर ज्ञान केन्द्र है। शक्ति और ज्ञान के विकास के लिए मेरुदण्ड की स्वस्थता सक्रियता अपेक्षित है। ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना में प्राण का प्रवाह सम्यक् रूप से होने लगता है। प्राण का प्रवाह सम्यक् प्रकार होने से व्यक्तित्व के विकास में अपेक्षित सहयोग मिलता है। मेरुदण्ड का सीधा रहना ध्यान के लिए आवश्यक है। मेरुदण्ड सीधा रहता है तो प्राण का प्रवाह सुषुम्ना में सहजता से होने लगता है। मेरुदण्ड की क्रियाएं पेट, गर्दन व कटि में ठहरे हुए विष को निकालने में सहयोगी बनती हैं। मेरुदण्ड क्रियाओं को सरलता से सब आबाल वृद्ध कर सकते हैं। __ मेरुदण्ड की क्रियाएं शरीर की स्थिति भूमि पर पीठ के बल लेटें । दोनों पैर सीधे रखें । हाथों को कंधे के समानान्तर सीधे फैलाएं। हथेलियां भूमि को स्पर्श करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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