Book Title: Jivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 190
________________ जीवन-विज्ञान : मस्तिष्क प्रशिक्षण की प्रणाली १. मस्तिष्क में असीम शक्ति है। २. उसको जागृत किया जा सकता है। ३. शक्ति की जागृति तनाव और थकान के बिना की जा सकती है। ४. मस्तिष्क विद्या के अनुसार मस्तक का बायां भाग तर्क, गणित, भाषा और भौतिक विचार के लिए उत्तरदायी है। उसका दायां भाग आध्यात्मिक जागृति, अन्तःप्रज्ञा, स्वप्न और कल्पना के लिए उत्तरदायी है। जीवन-विज्ञान की शिक्षा प्रणाली इन दोनों के सन्तुलित विकास की पद्धति है। ५. अनुकंपी नाडीतंत्र (पेरासिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम) की अति सक्रियता से व्यक्ति आक्रामक, उद्दण्ड बनता है, बेचैनी का अनुभव करता है। परानुकंपी नाड़ीतंत्र (सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम) की अति सक्रियता से व्यक्ति डरपोक, दब्बू हीनभावना से ग्रस्त होता है। यह स्नायविक असंतुलन है। जीवन-विज्ञान इन दोनों के संतुलन की पद्धति है। ६. विवेक (रीजनिंग माइंड) और संवेग (इमोशन) में संघर्ष रहता है। विवेक कहता है यह काम गलत है, नहीं करना है। संवेग प्रबल होता है, उसे करा देता है। इसलिए ज्ञान और आचरण की दूरी बनी रहती है। जीवन-विज्ञान संवेग नियंत्रण की पद्धति है। ७. संवेद (सेंस एनर्जी) निरन्तर क्रियाशील रहते हैं, इससे शक्ति का बहुत अपवय होता है। अति सक्रियता से मस्तिष्क और मेरुदण्ड प्रणाली पर दबाव पड़ता है। उससे स्वचालित नाड़ीतंत्र की प्रणाली पर दबाव पड़ता है। जीवन-विज्ञान संवेद-नियंत्रण की पद्धति है। ८. प्रमस्तिष्क (सेरेब्रम) में शक्ति संचित है। अनुमस्तिष्क (सेरेबेलम) उसका नियंत्रण करने वाला है। उसके द्वारा शक्ति प्रवाहित होकर सुषुम्नाशीर्ष (मेडुलाआंबलागेटा) में जाती है। वहां से यह मेरु में जाती है। वहां से शरीर की सारी प्रतिक्रियाएं चालू होती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236