Book Title: Jivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 209
________________ १६२ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग पंजाब की समस्या उग्र बनी। पूरे राष्ट्र का ध्यान केन्द्रित हो गया कि आतंकवाद समाप्त होना चाहिए, हिंसा की उग्रता अब नहीं चलनी चाहिए। इसका अर्थ यह है कि आदमी हिंसा चाहता नहीं, करता है। चाहता है अहिंसा एवं शांति किन्तु उन्माद आता है और उन्माद में वह हिंसा कर डालता है, शान्ति भंग हो जाती दो स्थितियां हैं। एक है उन्माद की स्थिति और दूसरी है शांत स्थिति । शांत स्थिति में आदमी अहिंसक मूल्य को महत्व देता है किन्तु उन्माद जब आता है, उस स्थिति में वह हिंसा कर लेता है। अहिंसा के संस्कार हिंसा स्वाभाविक या नैसर्गिक मांग नहीं है। वह एक अस्वाभाविक परिस्थिति है। हम कुछ कारणों से प्रभावित होकर उस दिशा में चले जाते हैं । यह बात समझ में आनी चाहिए कि समाज का मूल्य अहिंसा ही हो सकता है और उसी आधार पर समाज बना है। आज आदमी अहिंसा की बात को भूल-सा गया है। इस स्थिति में उपाय की बात सोचनी चाहिए कि किस उपाय से इस अहिंसा के मूल्य को पुनः प्रस्थापित करें ? इस पर जब चिंतन करते हैं तो ऐसा लगता है कि एक और प्रयोग किया जाए। वह प्रयोग यह हो कि बचपन से ही अहिंसा की आस्था उत्पन्न की जाए। जब हिंसा की आस्था उत्पन्न हो जाती है, यह धारणा बन जाती है कि हिंसा के बिना काम नहीं चलता, फिर उसे बदलना बहुत जटिल हो जाता है। बचपन के संस्कार इतने प्रभावी होते हैं कि बाद में आने वाले संस्कार उनके सामने टिक नहीं पाते । एक प्रयोग करने की जरूरत है और वह प्रयोग होगा बचपन से अहिंसा की आस्था का निर्माण। जीवन-विज्ञान की प्रकल्पना इसी चितन का एक परिणाम है। जिन सामाजिक मूल्यों को हम समाज में देखना चाहते हैं, विकसित करना चाहते हैं, उन सामाजिक मूल्यों को बचपन से ही प्रतिफलित करना चाहिए, उनके प्रति आस्था पैदा करनी चाहिए। अहिंसा की आस्था ___ आज सबसे बड़ा संकट है आस्था का । श्रद्धा इतनी विचलित है कि आदमी कहीं भी टिक नहीं पा रहा है। एक के बाद दूसरा और दूसरे के बाद तीसरा और तीसरे के बाद चौथा कदम आगे बढ़ रहा है। कहीं पैर जमाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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