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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग के प्रकाश की भांति चित्त के प्रकाश को पूरे भाग में फैलाएं और वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें। बीच-बीच में श्वास-संयम करें।
५. विशुद्धि-केन्द्र- चित्त को विशुद्धि केन्द्र- कण्ठ के मध्य भाग पर केन्द्रित करें। आगे से पीछे सुषुम्ना-शीर्ष तक चित्त के प्रकाश को फैलाएं। पूरे भाग में होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें। बीच-बीच में श्वास-संयम का प्रयोग करें।
६. ब्रह्म केन्द्र- चित्त को ब्रह्म केन्द्र- जीभ के अग्र भाग पर केन्द्रित करें। जीभ अधर में रहे। वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें।
७. प्राण केन्द्र- चित्त को प्राण केन्द्र- नासाग्र पर केन्द्रित करें। वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें।
८. अप्रमाद केन्द्र- चित्त को अप्रमाद केन्द्र- दोनों कानों पर- भीतरी, मध्य और बाहरी भाग पर तथा आस-पास के भाग पर केन्द्रित करें। वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें।
९. चाक्षुष केन्द्र- चित्त को चाक्षुष केन्द्र- दोनों आंखों के भीतर केन्द्रित करें। वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें।
१०. दर्शन केन्द्र- चित्त को दर्शन केन्द्र- दोनों आंखों और भृकुटियों के बीच केन्द्रित करें। भीतर गहराई में चित्त को ले जाएं। आगे से पीछेमस्तक के पीछे की दीवाल तक पूरे भाग में चित्त के प्रकाश को फैला दें। वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें। गहरी एकाग्रता और सजगता के साथ प्रेक्षा करें। बीच-बीच में श्वास-संयम का प्रयोग करें।
११. ज्योति केन्द्र- चित्त को ज्योति केन्द्र- ललाट के मध्य भाग पर केन्द्रित करें। भीतर गहराई में चित्त को ले जाएं। आगे से पीछे मस्तक की दीवाल तक पूरे भाग में चित्त के प्रकाश को फैला दें। पूरे भाग में होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें। बीच-बीच में श्वास-संयम का प्रयोग करें।
१२. शांति केन्द्र- चित्त को शांति केन्द्र- सिर के आगे के भाग में केन्द्रित करें। जैसे दीये का प्रकाश चारों दिशाओं में फैलता है, वैसे ही चित्त के प्रकाश को शांति केन्द्र पर फैलाएं और उसे गहरे तक ले जाएं। वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें।
१३. ज्ञान केन्द्र- चित्त को ज्ञान-केन्द्र- सिर के ऊपर के भाग, चोटी के स्थान पर केन्द्रित करें। दीये के प्रकाश की भांति पूरे भाग में चित्त के
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