Book Title: Jivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 188
________________ विधायक भाव १७१ वर्तमान में जीने का प्रयोग श्वास वर्तमान में होता है। यदि कोई आदमी पीछे से आकर नाक बन्द कर दे तो वह कहेगा-भले आदमी! मेरा नाक क्यों बंद करते हो ? श्वास लेने में मुसीबत आ रही है वह कहेगा, अरे! दो मिनट पहले श्वास ले रहे थे, एक मिनट पहले श्वास ले रहे थे, एक घंटे से श्वास ले रहे हो, अब नहीं लो तो क्या बात है? क्या यह तर्क चल सकता है ? भोजन दो घंटा पहले किया, अभी भूख नहीं लग रही है, क्योंकि भोजन का प्रभाव अभी बचा हुआ है। पर श्वास में यह तर्क नहीं चलता। जिस क्षण में श्वास नहीं मिलता, आदमी छटपटाने लग जाता है। श्वास वर्तमान का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व करने वाला तत्त्व है। जिसको वर्तमान में जीना है उसे श्वास को समझना ही पड़ेगा। जो श्वास का मूल्यांकन नहीं करता वह या तो अतीत में जीता है या भविष्य में जीता है, वर्तमान में नहीं जीता। वर्तमान में जीने का सबसे पहला सूत्र हैश्वास। जिस व्यक्ति ने श्वास को पकड़ा उसने अपनी चेतना को वर्तमान का आयाम दे दिया। जिसकी चेतना वर्तमान में रहेगी, वह न अतीत की स्मृतियों में उलझेगी, न भविष्य की कल्पना में उलझेगी। जिसकी चेतना वर्तमान में रहने लग गई, उस व्यक्ति ने अपने स्रावों पर नियंत्रण की चाबी अपने हाथ में ले जो काम विचार नहीं कर सकते, वह काम वर्तमान की चेतना कर सकती है, चित्त कर सकता है चेतना का जैसे ही परिवर्तन हुआ, स्राव का परिवर्तन हो जाएगा और स्त्राव का परिवर्तन हुआ तो वृत्तियों का परिवर्तन हो जाएगा। इस पूरे परिवर्तन के लिए हमें मानसिक समस्याओं को समझना, उनके स्वरूप, उनकी क्रिया, उनके स्रोत, उनके पीछे रहे हुए स्राव को समझना और स्राव को बदलने की प्रक्रिया को समझना होगा, यह पूरी श्रृंखला जब हमारे हाथ में आती है तब व्यक्ति अपना भाग्य-विधाता एवं अपने व्यक्तित्व का निर्माता बन जाता है। इसके लिए आवश्यक है-शरीर का शिथिलीकरण, मौन, मन की एकाग्रता और निर्विचारता। जो निर्विचारता का मूल्य होता है वह विचार का नहीं होता, जो विचार का होता है वह भाषा का नहीं होता और जो भाषा का होता है वह क्रिया का नहीं होता। निर्विचारता की स्थिति चेतना की सबसे बड़ी स्थिति है। इस स्थिति में जो भाव उपजता है, वह विधायक भाव ही होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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