Book Title: Jivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 192
________________ १७५ द्वेष जीवन-विज्ञान : मस्तिष्क प्रशिक्षण की प्रणाली माया चिड़चिड़ा दुःख दीनता/हीनता रूखा असफलता छिद्रान्वेषण आलसी रुग्णता अहं डांवाडोल दरिद्रता आग्रह धोखेबाज थकावट स्वार्थी ऊब आदि-आदि आदि-आदि असंतोष आदि-आदि ___ जीवन-विज्ञान के द्वारा विधेयात्मक भाव का विकास कर निषेधात्मक भाव से मुक्ति पाई जा सकती है। शीघ्र अधिगम की पद्धति तनाव की अवस्था में ग्रहणशीलता और स्मृति प्रभावित होती है। जीवन-विज्ञान तनावमुक्ति की प्रक्रिया है। इससे ग्रहण की क्षमता बढ़ती है, स्मृति का संवर्धन और बौद्धिक विकास होता है। विद्यार्थी को कायोत्सर्ग (शिथिलीकरण) की अवस्था में पढ़ाया जाए तो वह अपने विषय को शीघ्र ग्रहण कर सकता है। यह शिक्षा की 'सद्योग्रहण' पद्धति है। इसमें विद्यार्थी को तन्द्रा की अवस्था में ले जाना और अध्यापक द्वारा पाठ का लयबद्ध उच्चारण करना बहुत अपेक्षित है। वह उच्चारण सुझाव (सजेशन) के रूप में प्रस्तुत किया जाए। इसमें संदेश-पद्धति बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है। उसके द्वारा चेतन और अचेतन मन के बीच संवाद स्थापित किया जा सकता है। स्मृति-संवर्धन और ग्रहण-क्षमता का मौलिक आधार है- लयबद्ध श्वास। लयात्मक श्वास के द्वारा मस्तिष्क को पर्याप्त ऑक्सीजन मिल जाती है। जब मस्तिष्क कार्यरत होता है, तब उसे शरीर से तिगुने ऑक्सीजन की जरूरत होती है, लयबद्धश्वास के द्वारा मानसिक और भावनात्मक तनाव कम होता है और ध्यान अपने भीतर की ओर आकर्षित होता है। पाठ पढ़ते समय श्वास का संयम (कुम्भक) हो तो वह अधिक प्रभावी बनता है। जीवन-विज्ञान मस्तिष्क प्रशिक्षण की पद्धति है। उसके तीन अंग हैं१. संवेद-नियंत्रण पद्धति ३. विचार-नियंत्रण पद्धति २. संवेग-नियन्त्रण पद्धति उसके साध्य तत्त्व सात हैं१. श्वास नियन्त्रण २. शरीर नियन्त्रण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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