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जीवन विज्ञान : सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास का सकल्प
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सोचते हैं कि संसार में दुःख अधिक है। इस भ्रान्ति को तोड़ना आवश्यक है। समस्याएं दो प्रकार की होती हैं-यथार्थ और काल्पनिक। रोटी की, कपड़े और मकान की समस्याएं यथार्थ हैं। जीवन यापन की समस्या भी यथार्थ है। हम सोचें कि यथार्थ की समस्या का दुःख कितना है और काल्पनिक समस्या का दुःख कितना है। हम लेखा-जोखा करें तो ज्ञात होगा कि काल्पनिक समस्याएं अधिक होती हैं। हम दुःख का भार न ढोएं। जो दुःख का भार नहीं ढोता वह समस्याओं से आक्रान्त नहीं होता।
समस्या के समाधान का उपाय है-श्रमनिष्ठा, उत्पादक श्रम । यदि विद्यार्थी में श्रमनिष्ठा और उत्पादक श्रम की मनोवृत्ति जागती है तो समस्या का समाधान होता है। यदि वह नहीं जागती है तो अनेक काल्पनिक समस्याएं और जुड़ जाती हैं। आदमी में उत्पादक श्रम के प्रति कम निष्ठा है और फिजूल कार्य के प्रति अधिक उत्साह है। यदि शिक्षा जगत् इस मनोवृत्ति को बदलकर उत्पादक मनोवृत्ति पैदा कर सके तो उसका बहुत बड़ा अवदान हो सकता है। इसको बदला जा सकता है एकाग्रता और विधायक भाव के द्वारा। इन्हीं के द्वारा वह चेतना पैदा की जा सकती है, जो सुख की चेतना है।
अभ्यास
१. अर्थ तंत्र, राज्य तंत्र, धर्म तंत्र आदि समाज के विभिन्न तन्त्र असंतुलित क्यों
हैं ? असंतुलन के कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को रेखांकित करें।
वर्तमान शिक्षा में जो पढ़ाया जा रहा है, क्या वह सब जीवन विकास के लिए ___ आवश्यक है? आवश्यकता की कसौटी क्या है ? ३. विद्यार्थी के लिए चित की स्थिरता क्यों जरूरी है। ४. ध्यान के पांच अंग कौनसे हैं, और उनकी निष्पत्ति क्या है ?
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