Book Title: Jivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 205
________________ १८८ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग फिर उसने कहा-महाराज ! कपड़े को ध्यान से देखने पर कपड़े का एक-एक बात मेरे सामने स्पष्ट हो गया और मुझे लगा कि कपड़ा सघन नहीं है, चलनी मात्र है। हम किसी भी वस्तु को एकाग्रता से देखेंगे तो हमें उसका वास्तविक स्वरूप दीखने लग जाएगा। यह है 'विचार' की अवस्था । ___ ध्यान का तीसरा अंग है-'प्रीति' | जहां जानना होता है वहां राग-द्वेष नहीं होता। जहां राग-द्वेष समाप्त होता है, वहां जानना नहीं होता। राग समाप्त होता है, तब प्रीति पैदा होती है। द्वेष समाप्त होता है, तब प्रीति पैदा होती है। जब पदार्थ के साथ भी प्रीति पैदा होती है तब उसके साथ सही सम्बन्ध होता है। शुद्ध मैत्री का सम्बन्ध ही प्रीति का सम्बन्ध है। ध्यान का चौथा अंग है-'सुख' । यह हमारे चैतन्य की अवस्था है। यहां कोई बाधा नहीं होती। इन्द्रिय जगत् में वास्तविक सुख नहीं हो सकता। जब तक विषयासक्ति का अतिक्रमण नहीं होता, तब तक सुख नहीं होता। जब केवल सत्य के साथ जुड़ते हैं तब सुख पैदा होता है। यह वास्तविक सुख की अवस्था है। जब यह अवस्था व्यक्ति में जागती है तब व्यक्ति यथार्थ में शिक्षित होता है। उसी को शिक्षित व्यक्ति मानना चाहिए। साक्षरता और शिक्षा एक बात नहीं है। दोनों अलग-अलग है। ___ साक्षरता से अक्षर-ज्ञान तो हो जाता है, पर शिक्षित होने के लिए और अधिक बातें अपेक्षित होती हैं। ___ध्यान का पांचवा अंग है-'एकाग्रता' । सुख के बाद एकाग्रता की चेतना पैदा होती है। हम एकाग्रता से चले और एकाग्रता पर आकर स्थापित हो गए। हमने श्वास का आलम्बन किया और इसके स्वरूप को जानने के लिए विचार प्रारम्भ किया। फिर उसमें प्रीति पैदा हुई । वह अच्छा लगने लगा। फिर सुख मिला। जब सुख मिलने लगा तो उसमें एकाग्रता होने लगी। यह एक प्रक्रिया है, सत्य की खोज का मार्ग है। यदि विद्यार्थी में प्रारम्भ से ही यह वृत्ति पैदा कर दी जाए तो उसका जीवन सफल हो सकता है। इसको हम एक निश्चय के साथ दोहराएं कि किसी विषय पर स्थिर हुए बिना, एकाग्रता स्थापित किए बिना, विकास हो नहीं सकता। ७. विद्यार्थी सुखी जीवन जीना चाहता है, क्या समस्याओं से छुटकारा पाए बिना उसकी यह चाह पूरी हो सकती है ? जब सुख का साक्षात्कार होता है तब दुःख कम हो जाता है। प्रायः लोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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