Book Title: Jivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 194
________________ १७५ जीवन-विज्ञान : मस्तिष्क प्रशिक्षण की प्रणाली विद्यार्थी का व्यवहार, चरित्र और अनुशासन-इनको शिक्षा से अलग नहीं किया जा सकता। केवल बौद्धिक विकास को शिक्षा नहीं माना जा सकता। बौद्धिक विकास के साथ ये सारी बातें अविच्छिन्न और अविभक्त रूप में जुड़ी हुई हैं। जैसे-जैसे विद्यार्थी में बौद्धिक विकास हो, वैसे-वैसे उसमें चरित्र, व्यवहार और अनुशासन का विकास भी हो। मूल्यात्मकता और शिक्षा-दोनों को कभी अलग नहीं किया जा सकता। जो सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्य हैं, उनको छोड़कर शिक्षा को भिन्न स्वतंत्र रूप में नहीं देखा जा सकता। इसलिए मस्तिष्क का वैसा प्रशिक्षण हो, जिससे ये सारे मूल्य एक साथ संभाविता के रूप में विकसित हो सकें। इस दृष्टि से मस्तिष्क के सभी केन्द्रों को विकसित करना जरूरी है। जीवन-विज्ञान का अभ्युपगम जीवन-विज्ञान की प्रणाली का आधारभूत तत्व यह है कि मस्तिष्क का संतुलन केवल पढ़ने से नहीं हो सकता, केवल बुद्धि के द्वारा नहीं हो सकता। बुद्धि का कार्य है विश्लेषण करना, निर्धारण और निश्चय करना। चरित्र का निर्माण करना बुद्धि का काम नहीं है। मस्तिष्क में अनेक केन्द्र हैं। बुद्धि का केन्द्र भिन्न है और चरित्र निर्माण का केन्द्र भिन्न है। मस्तिष्क-विद्या के आधार पर मस्तिष्क के केन्द्रों का निर्धारण भी कर लिया गया है कि कौन सा केन्द्र किसके लिए उत्तरदायी है। कौन से रसायनों के द्वारा कैसे विद्युत-संवेग पैदा होते हैं, संवेदना पैदा होती है। किस रसायन के द्वारा उनका नियंत्रण होता है और किस केन्द्र से कौनसी प्रवृत्ति होती है-यह सारा ज्ञान कर लिया गया है। समन्वित विकास शिक्षा का उद्देश्य है कि विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास हो। इसके लिए मस्तिष्क के उन सभी केन्द्रों को सक्रिय करना होगा, जो उन-उन गुणों के मूल स्रोत है। जब कुछ केन्द्र सोए रहते हैं और कुछ जागृत हो जाते हैं, तब सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। सर्वांगीण विकास में यह माना जाता है कि व्यक्ति का शरीर स्वस्थ हो, मन संतुलित हो, बुद्धि विकसित हो और भावना शुद्ध हो। इन चारों की जरूरत है। इनके एकांगी विकास को सर्वांगीण विकास नहीं कहा जा सकता। एकांगी विकास में समस्याएं अधिक उभरती हैं। धर्म या अध्यात्म के एंकागी विकास से कोई गुफा में बैठकर साधना तो कर सकता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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