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विधायक भाव यही विधायक भाव की निष्पत्ति है। शिक्षा जगत् यदि विद्यार्थियों को विधायक भावों के प्रति शिक्षित कर सके तो बहुत बड़ा कार्य हो सकता है। यह कार्य प्रारंभ से ही करने का है। बच्चे विधायक भावों को जब पकड़ लेते हैं, तब उनके संस्कार अच्छे बनने में विलंब नहीं होता। विधायक भावों का विकास होने पर शिक्षा जगत् की अनेक समस्याएं स्वयं समाहित हो जाएगी। चिन्तन का कोण
शिक्षा की समस्या तब तक समाहित नहीं हो सकेगी जब तक उसके साथ अध्यात्म-विद्या नहीं जुड़ेगी, ध्यान का प्रशिक्षण नहीं जुडेगा। हमारी जो चालू शिक्षा है उसमें शरीर के लिए बहुत व्यवस्था है। रोटी चाहिए उसके लिए व्यवस्था है। कपड़ा चाहिए उसका ज्ञान भी कराया जाता है। और-और पदार्थ चाहिए, उनके लिए भी सारी व्यवस्था है। शरीर को सुविधा देने की पूरी व्यवस्था की गई है, किन्तु शरीर के साथ जुड़ा हुआ है मन। मन के साथ काफी उपेक्षा बरती गई है।
हम प्रायः स्थूल बुद्धि से काम लेते हैं। हमारी सूक्ष्म बुद्धि काम भी नहीं करती और इसलिए नहीं करती कि हम शरीर को केन्द्र में मानकर चल रहे हैं। अगर शरीर परिधि में हो तो कोई कठिनाई नहीं किंतु शरीर को जब केन्द्र में रखकर सारी समस्याओं पर सोचते हैं और उनका समाधान निकालने का प्रयत्न करते हैं तो समस्याएं उलझ जाती हैं, उनका समाधान नहीं होता। समस्या के समाधान का रास्ता यह है-चेतना केन्द्र में रहे, दूसरी सब बातें परिधि में रहें। चिन्तन का सारा कोण यह हो कि इस प्रवृत्ति की चित्त पर प्रतिक्रिया क्या होगी? जो काम किया जा रहा है, वर्तमान में बहुत अच्छा लग रहा है, पर चित्त पर इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी ? क्या परिणाम होगा ? हमारी चेतना पर इसके क्या संस्कार जमेंगे और उनके क्या प्रतिफलन होंगे ? यह चिन्तन का दृष्टिकोण समस्याओं को सुलझाने वाला दृष्टिकोण है और शरीर को केन्द्र में रखकर सोचने का दृष्टिकोण समस्याओं को उलझाने वाला दृष्टिकोण है । मानसिक समस्याओं का प्रश्न
आज शिक्षा के सामने एक प्रश्न है मानसिक समस्याओं का । जिस शिक्षा के द्वारा हमारी मानसिक समस्याओं का समाधान नहीं होता वह शिक्षा
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