Book Title: Jivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 183
________________ १६६ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग हमारे लिए वरदान नहीं बनती । केवल पदार्थ मिल जाए, मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाए, मानसिक विकास हो जाए, बौद्धिक विकास हो जाए, इतना ही पर्याप्त नहीं है। मानसिक विकास होना एक बात है और मानसिक समस्याओं का समाधान कर पाना दूसरी बात है। मानसिक विकास होता है, स्मृति बढ़ती है, चिन्तन की शक्ति बढ़ती है, कल्पना की शक्ति बढ़ती है। एक अनपढ़ आदमी जितना चिन्तन नहीं कर सकता है, पढ़ा-लिखा आदमी बहुत अच्छे ढंग से 'चिन्तन कर सकता है। एक अनपढ़ आदमी जहां परिकल्पना नहीं कर सकता, योजना नहीं बना सकता वहां एक शिक्षित व्यक्ति अच्छी कल्पना करता है, सुन्दर योजना बना सकता है। स्मृति की तीव्रता, चिन्तन की दक्षता और कल्पना की पटुता आ गई तो मानसिक विकास हो गया। इसका दूसरा पहलू भी है-जितना मानसिक विकास होता है उतनी मानसिक उलझनें बढ़ती हैं। स्मृति भी कम मानसिक उलझन नहीं होती । पशु की स्मृति बहुत तात्कालिक होती है तो मानसिक उलझनें भी नहीं होतीं । बच्चे की स्मृति भी तात्कालिक होती है । बहुत लम्बे समय तक बात याद नहीं रहती । बच्चा एक मिनट में रोता है और एक मिनट में हंसने लग जाता है । बड़ा ऐसा नहीं कर सकता, बच्चा कर सकता है । एक कोई चीज हाथ में थमा दो, शांत। छीन लो, रोने लग जाएगा। फिर दे दो हंसने लग जायेगा। एक मिनट में बच्चा दो-चार बार बदल जाता है। इसलिए कि उसकी स्मृति की तीव्रता अभी नहीं हुई है। स्मृति बहुत क्षणिक है बच्चे की । ऐसी स्मृति नहीं है कि एक बात को याद कर लिया तो कर ही लिया। दस वर्ष बीत जाए, घटना सामने आएगी तो तत्काल स्मृति दौड़ आएगी और कोई न कोई अवरोध पैदा हो जाएगा। स्मृति का भार आदमी ढोता है। स्मृति से वह दुःखी बनता है, स्मृति जहां मानसिक विकास है वहां स्मृति बहुत सारी समस्याओं को पैदा करने का एक बहुत बड़ा कारण भी है। चिन्तन भी विकास का मानदण्ड है, किन्तु चिन्तन समस्याएं पैदा करने वाला भी है। न जाने हमारी कितनी समस्याएं चिन्तन के द्वारा ही पैदा होती हैं। यदि अचिन्तन की बात हो तो समस्या नहीं होती । चिन्तन इतना होता है कि वह सोचना स्वयं समस्या बन जाता है और सोचना स्वयं समस्या पैदा करने लग जाता है। आदमी सोचता चला जाता है फिर भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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