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मूल्यपरक शिक्षा : सिद्धान्त और प्रयोग
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भीतर को बदला जा सकता है और भीतर के द्वारा बाहर को बदला जा सकता है।
अणुव्रत स्टोर
दिल्ली के स्कूलों में एक बार 'अणुव्रत स्टोर' का प्रयोग किया गया। यहां एक खुले कमरे में पेन्सिलें, कोपियां, पाठ्यपुस्तकें तथा अन्यान्य सामान्य वस्तुएं, जो विद्यार्थियों के उपयोग में आती हैं, रख दीं। सबके मूल्यों की एक सूची टांग दी और विद्यार्थियों से कहा गया कि नियत मूल्य वहां एक पेटी में डालकर वस्तुएं खरीद लें। न वहां कोई निरीक्षक था और न पैसा लेने वाला । यह प्रयोग चला। अप्रामाणिकता की कुछेक छुटपुट घटनाएं सामने आईं, पर अधिकांश विद्यार्थियों ने प्रामाणिकता से काम किया। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि विद्यार्थियों में भाव परिवर्तन हुआ है। यह व्यवहार परिवर्तन के द्वारा भाव - परिवर्तन का उदाहरण है। जब व्यक्ति एक प्रकार का अभ्यास करता जाता है तब मांसपेशियों का अभ्यास भी भाव को बदल देता है। जिसको हाथ उठाने का अभ्यास होता है, तब उत्तेजना के समय में उसे सोचना नहीं पड़ता कि मुझे हाथ उठाना है, हाथ स्वयं उठ जाता है। मांसपेशियां इतनी अभ्यस्त हो जाती हैं कि सोचने की जरूरत ही नहीं होती। पहले दिन जब नए मकान की सीढियां चढ़ते हैं तब बहुत ध्यान रखना होता है। किन्तु जब हम अभ्यस्त हो जाते हैं तब पांव स्वत: ऊपर चढ़ने-उतरने में स्खलित नहीं होते। मांसपेशियों को अभ्यास हो जाता है।
मूल विकास : दो पद्धतियां
यह स्पष्ट है कि भाव के द्वारा व्यवहार को और व्यवहार के द्वारा भाव को बदला जा सकता है। हमें विद्यार्थी के व्यवहार को बदलना है तो कुछ प्रयोग करने होंगे। प्रत्येक व्यक्ति में सोचने-समझने की शक्ति होती है और जब कुछ प्रयोग किए जाते हैं तब चेतना बहुत शीघ्र जागृत हो जाती है। बुद्धि - परीक्षा के अनेक प्रयोग किए जाते हैं। उसी प्रकार आदत के परिवर्तन के लिए भी अनेक प्रयोग किए जा सकते हैं। मूल्यों का विकास प्रयोग और अभ्यास के द्वारा हो सकता है। इसलिए प्रयोगों को विकसित किया जाए।
विद्यार्थी के मन में एक भय होता है, स्कूल के प्रति एक भावना होती है। जब उसे यह लगता है कि वहां मेरा स्वागत होता है, सम्मान होता है, मुझे
है।
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