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आदतें बनती हैं, उनके कारण भी खोजे गए हैं।
जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग
ऑब्जेक्ट की स्मृति : सब्जेक्ट की विस्मृति
शिक्षा के क्षेत्र में यह ध्यान देना बहुत जरूरी है कि बालक की आदतें जटिल न बनें और वह विकारों में न फंसे। इसके लिए उसके संवेगों पर ध्यान देना आवश्यक है। जैसे अक्षर - बोध शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। वैसे ही जीवन के निर्माण का बोध भी शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। जैसे भाषा और तर्क का बोध शिक्षा का एक अनिवार्य अंग है वैसे ही जीवन के निर्माण का बोध भी शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। जैसे गणित का ज्ञान शिक्षा का एक अनिवार्य अंग है वैसे ही जीवन-निर्माण का ज्ञान सिखाना भी शिक्षा का अनिवार्य अंग है। अक्षर-बोध, गणित का ज्ञान, भाषा और तर्क का बोध-ये आजीविका चलाने के साधन हैं। ये जीवन के साध्य नहीं हैं। कभी-कभी आदमी साधन को प्रथम मान लेता है और मूल को भुला बैठता है। आदमी का सारा ध्यान साधन पर अटका रहता है। साधन जिसके लिए है, वह उपेक्षित रह जाता है। सब्जेक्ट आंखों से ओझल हो जाता है और सारा ध्यान ऑब्जेक्ट पर अटका रह जाता है। व्यक्ति आग से जलते हुए घर में से सारा कीमती सामान निकाल लेता है, पर उस बच्चे को, जो उस सामग्री का भोक्ता होने वाला है, निकालना भूल जाता है। भोग्य पदार्थ बचा लिया जाता है और भोक्ता आग में जलकर भस्म हो जाता है।
हमारा ध्यान सब्जेक्ट पर, भोक्ता पर नहीं है । सारा ध्यान भोग्य पर, आब्जेक्ट पर केन्द्रित है, साधनों पर केन्द्रित है। यह एक दुर्व्यवस्था है। इसका प्रतिरोध या प्रतिकार बहुत आवश्यक है।
यह नहीं कहा जा सकता साधनों पर ध्यान नहीं जाना चाहिए। साधन जरूरी है। उन्हें टाला नहीं जा सकता। मुख्य बात यह है कि वे जिसके लिए हैं, वह उपेक्षित नहीं होना चाहिए।
शिक्षा का उद्देश्य
संवेगों का परिष्कार इसलिए जरूरी है कि यदि बालक अपने विद्यार्थी जीवन में असंतुलित संवेग वाला बन गया तो वह समाज के लिए सिरदर्द बन जाएगा। हम नहीं चाहते कि विद्यार्थी समाज के लिए सिरदर्द बने । आज तो यह स्थिति है कि विद्यार्थी शिक्षा के क्षेत्र में भी सिरदर्द बन जाता है। जो शिक्षाकाल में सिरदर्द बन जाता है, वह आगे जाकर पूरा सिरदर्द बनेगा ही ।
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