________________
शिक्षा और जीवन-मूल्य
प्राचीन शिक्षा-प्रणाली में नैतिकता का बहुत मूल्य था और उसकी चर्चा भी उपलब्ध होती है। आज 'नैतिक शिक्षा' इस शब्द के स्थान पर 'मूल्यपरक शिक्षा'यह शब्द प्रस्थापित हो गया है। इसकी आज बहुत चर्चा है। आज मूल्यों की अपेक्षा है। उसकी पूर्ति का साधन शिक्षा बने। जीवन - विज्ञान की प्रणाली में सोलह मूल्यों का निर्धारण किया गया है। वे जीवन-विज्ञान की शिक्षा के साथ जुड़े हुए हैं। जीवन विज्ञान में उन मूल्यों को अनेक स्तरों में बांटा गया है
-
मूल्यों का वर्गीकरण
१. सामाजिक मूल्य-कर्त्तव्यनिष्ठा, स्वावलंबन ।
२. बौद्धिक - आध्यात्मिक मूल्य - सत्य, समन्वय, संप्रदाय निरपेक्षता, मानवीय
एकता ।
३. मानसिक मूल्य-मानसिक संतुलन, धैर्य ।
४. नैतिक मूल्य - प्रामाणिकता, करुणा, सह-अस्तित्व ।
५. आध्यात्मिक मूल्य- अनासक्ति, सहिष्णुता, मृदुता, अभय, आत्मानुशासन।
पहले वर्ग के मूल्य बौद्धिक हैं। दूसरे वर्ग के चारों मूल्य शुद्ध रूप में बौद्धिक नहीं कहे जा सकते। वे बौद्धिक भी हैं और आध्यात्मिक भी हैं। सत्य की खोज करना बुद्धि का काम है। अध्यात्म का भी काम है सत्य की खोज करना । इसी प्रकार शेष तीन मूल्य भी बौद्धिक और आध्यात्मिक- दोनों हैं।
इस प्रकार पांचों वर्ग के सोलह मूल्यों का विकास करना जीवन-विज्ञान का ध्येय है। सामाजिक और नैतिक दृष्टि से इनका विकास होना बहुत जरूरी है। मूल्यपरक दृष्टि में मूल्य का बोध होना बहुत आवश्यक है, अन्यथा सामाजिक स्थिति लड़खड़ा जाती है।
जिसको मूल्य-बोध नहीं होता, वह किसी चीज का मूल्यांकन नहीं कर
सकता।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org