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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग नम्बर की समस्या है। मुख्य समस्या है-आस्था की कमी।
. आचार्य तुलसी ने जब अणुव्रत आंदोलन का प्रवर्तन किया तब कहा था-समाज में अनैतिकता है, यह मुझे गम्भीर समस्या नहीं लगती। गंभीर बात यह है कि नैतिकता के प्रति आदमी की आस्था नहीं रही। वह यही कहता है, नैतिकता से काम नहीं चलता।' यह सबसे बड़ा खतरा है। आस्था जब डिग जाती है तब नैतिकता नहीं रह सकती। आस्था जब टिक जाती है, तब अनैतिकता नहीं रह सकती। आस्था के दृढ़ होने पर न नैतिकता का प्रश्न उठता है और न अनैतिकता का। आदमी सहज शुद्ध हो जाता है। किन्तु जब यह कहा जाने लगता है कि नैतिकता से काम नहीं चलता, ईमानदारी से काम नहीं चलता तब नैतिकता को जीवित करने का प्रयास ही समाप्त हो जाता है। इसलिए आस्था का निर्माण होना बहुत जरूरी है। समाज के सभी लोग चाहते हैं कि अनैतिकता मिटे, क्योंकि सबको उसकी कठिनाई महसूस होती है। अनैतिक आचरण करना कोई नहीं चाहता, पर करते सब हैं। सारा समाज अनैतिकता के इस चक्रव्यूह में फंसा हुआ है। वह चक्रव्यूह में फंस तो गया पर उसका भेदन करना नहीं जानता। वह कैसे बाहर निकले, यह एक प्रश्न है। जिस समाज में नैतिकता का विकास नहीं होता, वह समाज प्रगति नहीं कर सकता। शिक्षा जगत् की कठिनाई
__ अनैतिकता से सारा राष्ट्र आक्रांत है। उसे कैसे मिटाया जाए ? नैतिकता को जागृत करने के दो क्षेत्र हैं-धर्म का क्षेत्र और शिक्षा का क्षेत्र। इन दोनों क्षेत्रों से विद्यार्थी में संस्कार आ सकते हैं। यहीं विद्यार्थी का निर्माण हो सकता है।
आज धर्म के क्षेत्र में नैतिकता और चरित्र की अपेक्षा उपासना की पद्धति पहले स्थान पर बैठी है। शिक्षा के क्षेत्र में यदि अभ्यास-क्रम से विद्यार्थी को कुछ मिल जाए तो कुछ समाधान हो सकता है पर शिक्षा जगत् की भी अपनी कठिनाई है। आज का शिक्षाशास्त्री, शिक्षक, शिक्षण संस्थाएं या अन्यान्य संस्थान जो शिक्षा की दिशा में काम कर रहे हैं, उनकी भी यही धारणा है कि विद्यार्थी को बौद्धिक विकास पूरा करा दिया जाए। टेक्नोलॉजी और इन्टलेक्ट को जितना महत्त्व मिल रहा है उतना महत्त्व चरित्र-निर्माण या समाज-व्यवस्था के घटकों के निर्माण को नहीं दिया जा रहा है,क्योंकि वे उस ओर ध्यान ही नहीं दे पा रहे हैं और उनके सामने इसका स्पष्ट चित्र भी नहीं है।
यह सब अनुभव कर रहे हैं कि सामाजिक व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से
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