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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग सामंजस्यपूर्ण जीवन
अनेकांत की पहली शर्त है-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के साथ सामंजस्य स्थापित करना। आज यह अध्ययन किया जा रहा है कि स्वभाव और चरित्र में क्या सम्बन्ध है ? हमारे स्वभाव और चरित्र का सम्बन्ध वस्तु के साथ नहीं, क्षेत्र के साथ है और विभिन्न अवस्थाओं के साथ है। वातावरण के साथ सामंजस्यपूर्ण स्थिति चारित्रिक विशेषता प्रदान करती है। जो व्यक्ति पढ़ा-लिखा होकर भी परिस्थिति और वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर सकता, वह चरित्रवान् नहीं हो सकता। सामंजस्य हमारे जीवन का मूल्य है। यह सह-अस्तित्व का मूल मन्त्र है। इस स्थिति का निर्माण करने में दर्शन और धर्म का पूरा सहयोग रहता है। जीवन-विज्ञान के क्षेत्र में दर्शन का अर्थ है-सर्वांगीण जीवन-दर्शन, वह जीवन जो एकपक्षीय न हो।
प्रश्न यह है-सर्वांगीण जीवन दर्शन के प्रति हमारी रुचि कैसे बढ़े और नियंत्रण की शक्ति का विकास कैसे हो ?
___ इस प्रश्न का समाधान विनम्रता के मूल्य को विकसित करना है। प्राचीन सूत्र है-'विद्या ददाति विनयम्'- विद्या विनय उपलब्ध कराती है। इसको हम इस प्रकार बदल दें-'विनयो ददाति विद्याम्'- विनय विद्या उपलब्ध कराता है। दोनों का सम्बन्ध है। एक चक्र बन जाता है। विद्या विनय देती है। विनय विद्या देता है। यह भी रूढ़ जैसा बन गया है। हम हार्द को कम पकड़ पा रहे हैं कि विद्या विनय कैसे देती है ? विनय विद्या कैसे देता है। ग्रहणशीलता का विकास
विद्या ग्रहणशील व्यक्ति को प्राप्त होती है। जो ग्रहणशील नहीं होता वह विद्या को प्राप्त नहीं कर सकता। ग्रहणशील वह होता है जो विनम्र होता है। वह विद्या को पकड़ पाता है। यह हीनभावना या लाचारी नहीं है। आज शिक्षा के क्षेत्र में विनय को हीनभावना माना जाता है। मूल्य बदल गया।
विनय की परिभाषा है-ग्रहणशीलता। यहां कोई अवरोध नहीं, रुकावट नहीं। द्वार सदा खुला रहता है। शिक्षा के साथ यह बात जुड़नी चाहिए। किंतु यह भी धार्मिक चेतना के बिना नहीं हो सकती। जब आवेगों पर नियन्त्रण पाने में कठिनाई होती है जब समग्र जीवन-दर्शन की प्राप्ति संभव नहीं होती। जिस दर्शन की प्रणाली में सामाजिक, आर्थिक और नैतिक मूल्य तथा मानसिक और आध्यात्मिक मूल्यों की संभावना का समावेश नहीं होता, वह एकांगी है। उससे
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