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शिक्षा और जीवन मूल्य
१२७ व्यक्तित्व उस व्यक्ति का होता है जो ज्ञान-सम्पन्न भी है और आचार-सम्पन्न भी
व्यवहार का महत्व
__ केवल पढ़ा-लिखा होने मात्र से पारिवारिक सामंजस्य नहीं हो जाता। पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी बहुत झगड़ालू होता है। उसमें ज्ञान का अहं होता है और तब उसका विवेक जागृत नहीं होता। जब तक व्यक्ति में ज्ञान के साथ आचार की बात विकसित नहीं होती तब तक वह परिवार के लिए खतरा बना रहता है। उसका पारिवारिक जीवन विवादग्रस्त बन जाता है वह सह-अस्तिव की बात भूल जाता है। जो व्यक्ति परिवार में सामंजस्यपूर्ण स्थिति स्थापित कर सकता है, वह कम पढ़ा-लिखा होने पर भी अधिक उपयोगी होता है। जो ऐसा नहीं कर सकता, वह कितना ही पढ़-लिख जाए, उसका ज्ञान मूल्यहीन है। आदमी दूसरे आदमी से जुड़ता है, उसमें उसका व्यवहार मुख्य कारण बनता है, ज्ञान नहीं। यदि उसका व्यवहार मृदु और सौहार्दपूर्ण है तो वह सबका प्रिय बन जाता है। लोग उसके व्यवहार की प्रशंसा करेंगे, उसके ज्ञान को नहीं पूछेगे। दायित्व चेतना
ज्ञान बहुत खतरनाक होता है। आचरणमुक्त ज्ञान अत्यन्त खतरनाक होता है। इस खतरे को आज जन-जन भोग रहा है, फिर भी उसी बुद्धि और ज्ञान की पूजा की जा रही है, उसी को बढ़ाने का प्रयत्न हो रहा है।
हमारा प्रारम्भ अधिकार पक्ष से होता है। बच्चा अपने अस्तित्व को तृप्त करने के लिए प्रयत्न करता है। शिक्षा का काम है अधिकार पक्ष को सीमित कर दायित्व पक्ष को विकसित करना। जब दायित्व पक्ष विकसित नहीं होता है और अधिकार पक्ष प्रबल बना रहता है तो वह खतरनाक सिद्ध होता है। आज जो आर्थिक और सत्तागत समस्याएं हैं वे सारी अधिकार पक्ष के साथ जुड़ी हुई हैं। अधिकार पक्ष की मनोवृत्ति बचपन से ही शुरू हो जाती है और वह क्रमश: बढ़ती जाती है। जब सामाजिक और पारिवारिक दायित्व की चेतना नहीं जागती तब निरंकुश अधिकार पक्ष सारे चरित्र को ले डूबता है। शिक्षा का काम है-दायित्व की चेतना को जगाना। उस चेतना का जागरण धर्म या अध्यात्म की शिक्षा के बिना सम्भव नहीं है। उसके बिना वातावरण या परिस्थिति के साथ सामंजस्य स्थापित करने की स्थिति नहीं बनती।
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