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जीवन विज्ञान-शिक्षा की अनिवार्यता
४५ हैं। अगर ऐसा सोचते हैं तो सोचना भ्रांत होगा। आज तक के पूरे विश्व के इतिहास को उठाकर देखें, जितने महायुद्ध हुए हैं, जितनी बड़ी लड़ाइयां हुई हैं, वे बहुत छोटी बातों को लेकर हुई हैं। बड़ी बात इतनी साफ होती है कि उसको लेकर लड़ाई लड़ने की जरूरत नहीं पड़ती। बहुत छोटी-छोटी बातों को लेकर लड़ाइयां हुई हैं और इतिहास इसका साक्षी है- एक राजा दूसरे राजा को कोई एक अपशब्द कह देता, बस उसे सहन नहीं होता, तत्काल चढ़ाई हो जाती।
हमारे मन में इतने शस्त्र भरे पड़े हैं कि निःशस्त्रीकरण की बात सामने आती ही नहीं। शस्त्र है 'भाव'
'भाव' एक बहुत बड़ा शस्त्र है। लड़ाइयां भाव में ही पैदा होती हैं। भाव में से उतरकर मन में आती हैं, मन से वाणी में और फिर शरीर में आती है। सारे शस्त्रों का मूल केन्द्रीय-स्थान है- भाव। हमारा भाव संस्थान मन एवं विचारों को प्रभावित करता है, हमारी धारणाओं और मान्यताओं को प्रभावित करता है।
भाव में जितनी ताकत होती है उतनी ताकत शायद अणुबम में भी नहीं होती। एक बुरा भाव यदि अपनी शक्ति की सीमा को पार कर जाए तो न जाने कितने लोगों का अनिष्ट कर दे। हजारों, लाखों का ही नहीं, करोड़ों, अरबों का अनिष्ट कर सकता है। भाव बहुत बड़ा शस्त्र है इसलिए जैन आचार्यों ने एक नियम बनाया- किसी को साधना करनी है, अनिमेष ध्यान करना है तो हरियाली पर न किया जाए, यानी सचित्त वस्तु पर न किया जाए, सजीव वस्तु पर न किया जाए। सचित्त वस्तु पर त्राटक होता है, वह उन जीवों को कष्ट में डाल देता है। उनमें कठिनाई पैदा हो जाती है इसलिए न पानी पर, न फूलों पर, न वनस्पति पर- त्राटक न किया जाए। हमारे भाव में बहुत बड़ी ताकत होती है, भाव बहुत बड़ा शस्त्र है। अविरति
एक शस्त्र है 'अविरति'- आकांक्षा। आकांक्षा बहुत बड़ा शस्त्र है। जिस निःशस्त्रीकरण की जरूरत है, उसका प्रारम्भ इस शस्त्र के वर्जन से होना चाहिए। बहुत सारी घटनाएं सामने आती हैं- परिवारों की,भाइयों की, पिता-पुत्र की, पति-पत्नी की, सचमुच हैरानी होती है। एक ऐसी धारणा बन गई है कि
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