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स्वतन्त्रं व्यक्तित्व का निर्माण
७५ शिक्षा को सर्वांगीण बनाने का उपाय है। हम शिक्षा को सर्वांगीण बनाएं, अपनी दोनों आंखों से काम लें और अपने दोनों पैरों से चलें। समस्या है तो उसका मूल स्रोत बाहर खोजें और भीतर भी खोजें। समाधान करना है तो समाधान को बाहर भी खोजें और भीतर भी खोजें। केवल अटकें नहीं। बाहर भी न अटके भीतर भी न अटकें। बाहर और भीतर- दोनों सीमाओं पर जाएं और दोनों सीमाओं का अध्ययन कर समस्या को समझें और उसका समाधान खोजें। विस्मृति का रोग
___ मानसिक दृष्टि से विस्मृति का विचित्र रोग होता है। आदमी बहुत भूल जाता है और भूलने का एक कारण भी शायद यही है कि वह बाहर की ओर बहुत ज्यादा आकृष्ट होता है। बाहर में इतना खोजता है कि अपनी विस्मृति हो जाती है। अपने आस-पास की विस्मृति हो जाती है और अपनी अन्वेषणीय वस्तु की विस्मृति हो जाती है।
गोद में बच्चा है और बाहर ढूंढ़ने जा रहा है। पूछा-कहां जा रहे हो ? बच्चा खो गया, उसे ढूंढ़ने जा रहा हूं। तुम्हारी गोद में क्या है ? अच्छा, यह बच्चा है; पता ही नहीं चला मुझे।
___यह पढ़कर हंसी आती है, पर इस प्रकार की आत्म-विस्मृतियां कौन नहीं करता ? हर व्यक्ति करता है। अपने आपकी विस्मृति, अपने भीतर की विस्मति, अपनी अच्छाइयों की विस्मृति और अपनी बुराइयों की विस्मृति । आदमी बुराई करता चला जाता है और पता ही नहीं चलता कि मैं कोई बुराई कर रहा हूं। अच्छाई करता है, उसका भी पता नहीं चलता। अपने भीतर की शक्ति का भी पता नहीं चलता कि मैं क्या कर सकता हूं? कुछ आदमी बड़े निराशा के गीत गाते हैं और जब-जब निराशा का स्वर सामने आता है तो ऐसा लगता है, रचनात्मक और सृजनात्मक शक्ति समाप्त हो गई है। केवल निषेधात्मक पक्ष बचा है । कभी बिजली जलेगी नहीं । प्रकाश के लिए दोनों शक्तियां चाहिए । निषेधात्मक शक्ति भी चाहिए और विधायक शक्ति भी चाहिए । जब विधायक शक्ति समाप्त हो जाती है तो फिर निषेधात्मक शक्ति से हमारा कोई काम सधता नहीं। चिकित्सा हो प्राणशक्ति की
आज की सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि हम अपनी शक्ति पर भरोसा खो बैठे हैं। हमारी सबसे पहली शक्ति है-प्राणशक्ति। यह हमारे समूचे जीवन को संचालित करती है। हमें अपनी प्राणशक्ति पर भरोसा नहीं है। हम कुछ जानते भी
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