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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग मन बहुत चंचल है। इसको कैसे एकाग्र किया जाए ? उपाय की खोज की - श्वास चंचलता को कम करने का अचूक उपाय है। श्वास चंचलता पैदा करता है, सक्रियता लाता है। चंचलता को कम करना है तो श्वास की गति को कम करना होगा। श्वास की गति जितनी तेज होगी उतनी ही मात्रा में चंचलता बढ़ेगी। यह उपाय मिल गया। इसका बार-बार अभ्यास किया जाए।
अभ्यास का अर्थ है - सन्निधि, निकटता, पास में रहना । उस क्रिया का • अभ्यास ऐसा हो जाए कि क्रिया और करने वाला तदात्म हो जाए, एक हो जाए।
अभ्यास परिपक्वता के लिए तीन तत्त्व
अभ्यास को परिपक्व करने के लिए तीन तत्त्व अपेक्षित हैं- दीर्घकालिकता, निरंतरता और सत्कार - सेविता । अभ्यास को दीर्घकाल तक करते रहना चाहिए। दो-चार दिन करने से वह अभ्यास परिपक्व नहीं होता। दूसरी बात है कि अभ्यास निरंतर चलना चाहिए। दो दिन अभ्यास किया, चार दिन छोड़ दिया, फिर दस दिन किया, फिर बीस दिन छोड़ दिया ऐसा करने से अभ्यास फलदायी नहीं होता । ठीक फ्रीक्वेन्सी के बिना उसमें शक्ति नहीं आती। इसके लिए निरंतरता अपेक्षित होती है। तीसरी बात है - सत्कार - सेविता । जो अभ्यास करना है उसके प्रति पूर्ण सत्कार - भाव होना चाहिए, श्रद्धा होनी चाहिए। श्रद्धापूर्वक किया जाने वाला अभ्यास सही होगा और फलदायी होगा।
वृत्तियों और भावों के परिवर्तन के लिए जो उपाय या आलम्बन खोजे गये हैं, उनमें लक्ष्य तक पहुंचाने की क्षमता है। आलंबन कभी लक्ष्य तक नहीं पहुंचता । वह माध्यम बनता है। पहुंचता है व्यक्ति। वह आलंबन का समुचित सेवन करता है। और पहुंच जाता है। यह सब व्यक्ति पर निर्भर करता है इसलिए उपाय और आलम्बन से भी अधिक शक्तिशाली साधन बन सकता है अभ्यास। हम अच्छे-अच्छे सिद्धान्तों को जानते हैं, पर जब तक इन सिद्धान्तों का अभ्यास नहीं होता तब तक सिद्धान्त बहुत कारगर नहीं होते ।
संकल्प परिपक्वता के लिए आलंबन
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अनेक लोग अहिंसा में विश्वास करते हैं। वे अहिंसा का संकल्प लेते हैं। अहिंसा का संकल्प लेना एक बात है और अहिंसा को सिद्ध करना दूसरी बात है । संकल्प कर लिया कि मैं अहिंसक रहूंगा, हिंसा नहीं करूंगा। इतने मात्र से हिंसा रुक नहीं जाती, अहिंसा पक नहीं जाती । अहिंसा को पकने के लिए बहुत अभ्यास अपेक्षित होता है। बिना तेज आंच के कुछ पकता नहीं । अहिंसा के संकल्प को
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