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शिक्षा और भावात्मक परिवर्तन
१११ जरूरी है उपायज्ञ होना
प्रत्येक व्यक्ति विकास चाहता है। विकास का अर्थ है-परिवर्तन, जो है उससे आगे बढ़ना। विकास के लिए कुछ उपाय चाहिए। उपाय के बिना विकास नहीं होता। जो उपाय को प्राप्त हो जाता है वह लक्ष्य तक पहुंच जाता है। जो निरूपाय होता है, वह जहां का तहां बैठा रह जाता है। अत: सत्य की खोज के लिए सबसे बड़ा साधन है उपाय की खोज। आचार्य और शिक्षक वह होता है जो उपायज्ञ होता है, उपाय को जानता है। सबसे महत्त्व की बात है-आलंबन की खोज। यह एक उपाय है। बदलने के लिए आलंबन आवश्यक होता है। अनासक्ति का प्रयोग
विश्व साहित्य में सूक्तों का बहुत महत्त्व रहा है। अनेक सूक्त अनेक व्यक्तियों के लिए आलंबन बने और उनके सहारे अनेक लोगों का काया-पलट हो गया। एक-एक शब्द ने, एक-एक वाक्य ने, एक-एक श्लोक ने जीवन को बदल दिया। सूक्तों का प्रयोग बहुत प्राचीनकाल से हो रहा है। भरत चक्रवर्ती रोज आलंबन का प्रयोग करते थे। वे अनासक्त थे। चक्रवर्ती हो और अनासक्त रहे, यह बहुत बड़ी बात थी। पर आलंबन के सहारे यह बात भी घटित हो गई। वे राज्य करते, पर राज्य उनको छू नहीं पाया। यही कारण था कि वे महल में बैठे-बैठे केवली बन गए। उनका एक आलंबन-सूत्र था। जब मंगलपाठक उन्हें प्रातः जागृत करते तब वे कहते-'वर्धते भयं, वर्धते भयं'- भय बढ़ रहा है, भय बढ़ रहा है। इसका तात्पर्यार्थ था कि राज्य बहुत बड़ी आसक्ति है। आसक्ति भय का कारण बनती है। इस एक सूक्त के आधार पर भरत चक्रवर्ती अनासक्त बने रहे। अभ्यास से बनते हैं संस्कार
आलंबनों का बहुत महत्त्व होता है। विद्यालयों में अनेक आलंबन सूत्र लिखे जाते हैं। पर आलंबन भी अभ्यास के बिना इतने उपयोगी नहीं होते। __ आलंबन का अगला चरण है-अभ्यास।
अभ्यास का अर्थ है, पुनरावृत्ति, बार-बार करना। इसी अभ्यास से क्षमता का विकास होता है, शक्ति बढ़ती है।
__ अभ्यास के द्वारा ही संस्कार का निर्माण होता है। आचरण, व्यवहार और शब्द को बार-बार दोहराने से यह संस्कार बन जाता है। अभ्यास के बिना संस्कार का निर्माण नहीं होता।
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