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शिक्षा का नया आयाम : जीवन विज्ञान
१०५ रही हैं। यदि दृष्टिकोण बदल जाए तो समस्याओं का समाधान भी प्राप्त हो जाए।
जीवन-विज्ञान की प्रक्रिया की मूल फल श्रुति है-दृष्टिकोण का परिवर्तन। शिक्षा जगत् को दिशा दर्शन
दृष्टिकोण बदल सकता है, यह हमारी आस्था है। जीवन-विज्ञान ने इस आस्था को जगाया है। यह आस्था भी दृढमूल हुई है कि आदत, स्वभाव और व्यवहार में भी परिवर्तन आ सकता है। प्राचीन आचार्यों ने प्रत्येक वृत्ति को बदलने के लिए भिन्न-भिन्न उपाय निर्दिष्ट किए हैं। वे एकत्रित नहीं हैं, इधर-उधर बिखरे पड़े हैं। खोजने वालों को वे प्राप्त होते हैं। क्रोध, अहंकार, भय आदि आवेगों को बदलने के लिए अनेक प्रयोग हैं। अनेक व्यक्तियों ने वे प्रयोग किए, परिणाम अच्छे आए और वे प्रयोग उन-उन वृत्तियों के परिस्कार के लिए निर्दिष्ट हो गए।
___ जीवन-विज्ञान शिक्षा की पूरक कार्य-पद्धति है। मूल्यपरक शिक्षा को यह पूरी करती है। शिक्षा में जो भावात्मक परिवर्तन तथा चरित्र-निर्माण का पक्ष गौण है, उसकी यह पूर्ति करती है। यह अभिमत पुस्तकों के आधार पर नहीं बना है, किन्तु अनुभव के आधार पर बना है। अनुभव बुद्धि से परे होता है।
अनुभव के जाग जाने पर अनैतिकता का जगत् नहीं बचता। आज सारे लोग यही चाहते हैं कि अनुभव सोया ही रहे, बुद्धि जागती रहे। सारा भार बुद्धि पर लादा हुआ है।
आज जितने अनपढ़ मूर्ख हैं, उनसे अधिक हैं पढ़े-लिखे मूर्ख। आवश्यकता है कि तराजू के दोनों पलड़ों में समान वजन रखा जाए। बुद्धि और अनुभव का सन्तुलन होना आवश्यक है। अनुभव को जगाना अत्यन्त जरूरी है। जीवन विज्ञान इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
अभ्यास आज की शिक्षा प्रणाली में मस्तिष्कीय विकास की प्रचुर संभावनाओं के होते हुए भी जीवन विज्ञान शिक्षा की क्यों अपेक्षा हुई ? हिंसा की बढ़ती हुई समस्या को मिटाने के लिए दृष्टिकोण को बदलना भी
क्या आवश्यक है ? ३. सामाजिक विकास के लिए स्वामित्व की सीमा और भोगोपभोग की सीमा
क्यों जरूरी है?
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