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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग में काम करेगा। बुद्धि की अपनी सीमा है। परिवर्तन उसकी सीमा के अन्तर्गत नहीं
है।
आर्थिक व्यवस्था को बदलना सामाजिक प्रक्रिया के साथ जुड़ा हुआ है। आज की अर्थ-व्यवस्था वह बदलेगा, जिसके हाथ में अर्थनीति का नियंत्रण हो । आदमी को नियंत्रण का पालन करना है। कैसे करेगा ? बुद्धि के द्वारा बात आई और मस्तिष्क में पैठ गई, किंतु वह बदलने के तत्त्व के पास पहुंची ही नहीं। इसलिए अर्थ- व्यवस्था बदली नहीं। इसका मूल कारण है -- लोभ । लोभ एक संवेग है, इमोशन है, वह बदलने में बाधा उपस्थित करता है। आदमी में इतना लोभ है कि वह अपने स्वार्थ को सिद्ध करना चाहता है और नियंत्रण, नियमन और कानून को नीचे रख देना चाहता है। यहां बदलने की बात आती है बुद्धि के स्तर पर । बुद्धि को बदलना नहीं है। बदलना है संवेग को, लोभ को, भावना को, पर आदमी उसकी बात को स्वीकार ही नहीं कर रहा हैं। दोनों का संघर्ष है और इसी के आधार पर कथनी और करनी की दूरी बराबर बनी की बनी रहती है।
कथनी और करनी में दूरी एक समस्या है। यदि बौद्धिक विकास के साथ इस समस्या का समाधान होता तो आज के बौद्धिक वर्ग वैज्ञानिक, इंजीनियर, वकील आदि की कथनी और करनी समान होती, किंतु देखा जाता है कि उनमें भी कथनी-करनी की अपार दूरी है। उनका बुद्धि का स्तर बहुत विकसित हो गया, पर भावना के स्तर पर उन्हें बालक ही कहा जाएगा। जो बहुत बड़ा शब्दशास्त्री बन गया, पर यदि उसने लिंगानुशासन नहीं पढ़ा है तो वह बच्चा ही है। इसी प्रकार आदमी ने कितना ही बौद्धिक विकास कर लिया, किन्तु वह संवेद और संवेग के लिंगानुशासन से अनजान है तो वह बालक ही है। संवेद और संवेग के नियंत्रण को जाने बिना उसका ज्ञान व्यर्थ है। जब तक यह नियंत्रण की क्षमता उसमें विकसित नहीं होती तब तक कथनी और करनी की दूरी, ज्ञान और आचरण की दूरी को कभी नहीं मिटा सकते । शिक्षा का काम है इसमें समन्वय और सामंजस्य स्थापित करना । ज्ञान और आचरण के समन्वय का अर्थ है बौद्धिक एवं भावात्मक विकास में समन्वय । यह होने पर कथनी और करनी की समस्या का समाधान हो सकता है।
साम्यवादी प्रणाली में व्यक्तिगत नियंत्रण पर बहुत ध्यान दिया गया। पर आदमी बदला नहीं। जब तक हमारा ध्यान संवेगों के नियंत्रण और अनुशासन पर केन्द्रित नहीं होगा, तब तक समाज में परिवर्तन लाने की बात नहीं आएगी। साम्यवादी शिक्षा प्रणाली में यह माना गया कि ज्ञान केवल जानने के लिए, विश्व का पुनर्निर्माण करने के लिए और समाज को बदलने के लिए है। किंतु शिक्षा के
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