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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग विकास की संभावना नहीं हो सकती।
जो व्यक्ति ध्यान करने वाला है, जिसकी चेतना बदली है, उसकी आस्था भी बदल जाएगी। आस्था का पहला आधार यह होगा कि मुझमें असीम शक्तियां हैंयह विश्वास जागे। यह उसका सबसे पहला परिणाम होगा। यह कसौटी है- ध्यान का अभ्यास करने पर भी दुर्बलता नहीं मिटी तो मान लेना चाहिए-व्यक्ति ने ध्यान को नहीं पकड़ा, ध्यान ने व्यक्ति को नहीं पकड़ा। दोनों में संबंध जुड़ा नहीं। अपनी शक्तियों में विश्वास होना, यह पहली बात है।
__दूसरी बात है, अपनी शक्तियों को जागृत करने में विश्वास होना। यह विश्वास होना कि मैं अपनी शक्तियों को जगा सकता हूं। इसके लिए एक सरल प्रक्रिया अध्यात्म के आचार्यों ने प्रस्तुत की। कोई काम करना हो तो सबसे पहले दस मिनट के लिए इस पर ध्यान को केन्द्रित करो कि मुझमें असीम शक्तियां हैं। फिर दस मिनट अनुभव करो-मेरी शक्तियां जाग उठी हैं, सक्रिय हो उठी हैं। फिर दस मिनट में इस बात पर ध्यान केन्द्रित करो-मैं अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकता हूं
और मैं अपनी समस्या को सुलझा सकता हूं। तीन चरण में प्रयोग होगा। समय आधा घंटे का लगेगा, किन्तु यदि कार्य में दस घंटे लगते हैं तो पांच घंटे में ही कार्य हो जाएगा। मन की दुर्बलता जहां प्रबल है वहां शक्य कार्य भी अशक्य बन जाता है। मन की प्रबलता आती है, असंभव काम भी सम्भव लगने लग जाता है। साधुवाद देना चाहिए आज के वैज्ञानिकों को, जो कहीं हार नहीं मानते, कहीं पराजित नहीं होते। अनेक पीढ़ियां खप गईं, पर वे आगे से आगे विकास करते जा रहे हैं, खोजते जा रहे हैं। जिस समस्या को लिया, छोड़ा नहीं उसको। तब तक उसका पीछा नहीं छोड़ा, जब तक कोई समाधान नहीं मिला। कितने लोग अपने प्राणों की आहुति दे देते हैं, पर समस्या से मुंह नहीं मोड़ते। ध्यान का बड़ा परिणाम है आस्था का बदलना, शक्ति पर भरोसा होना और शक्ति का प्रयोग करना।
सामाजिक जीवन में संघर्ष अनिवार्य है। ऐसा कभी नहीं हो सकता कि सामाजिक जीवन जीएं और संघर्ष न हो। असंभव कल्पना है। निश्चित है, दो का होना और टकराना। दो होने का मतलब ही है टकराना। दो बर्तन भी टकरा जाते हैं, कभी-कभी अपने दो हाथ भी टकरा जाते हैं। आदमी कपड़ा धोता है, हाथ टकरा जाते हैं, नाखून चमड़ी छील देते हैं, लहूलुहान हो जाते हैं। एक हाथ का नाखून दूसरे हाथ की चमड़ी को छील देता है, बेचारे नाखून का कोई दोष नहीं। दो का मतलब ही है टकराना। कभी सम्भव नहीं कि दो हों और न टकरायें। सामाजिक जीवन में संघर्ष अनिवार्य है।
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