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स्वतन्त्र व्यक्तित्व का निर्माण
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किन्तु कभी-कभी ऐसा अवसर आता है कि पूर्वजन्म का ज्ञान उतर आता है और असमाधि समाप्त हो जाती है।
मगध सम्राट् महाराज श्रेणिक का पुत्र मेघकुमार मुनि बना। पहले ही दिन उलझ गया। अप्रत्याशित कष्टों से घबरा कर वह श्रामण्य से छुटकारा पाने का विचार कर बैठा। तत्काल उसे पूर्वजन्म की स्मृति करवाई गई । पूर्वजन्म की सारी घटनाएं उसकी आंखों के सामने चलचित्र की भांति एक - एक कर उभरने लगीं। मुनि मेघकुमार की चेतना आहत हुई । उसका सामर्थ्य जाग उठा । वह सम्भल गया । असमाधि मिटी और वह पुनः श्रामण्य में स्थिर हो गया ।
मन का शोधन
पानी पीया जाता है जब प्यास होती है। प्यास के बिना भी पानी पीया जाता है। । पर वह पानी नहीं होता, जो प्यास के समय पीने वाला पानी होता है। प्यास लगे, यह बहुत जरूरी है। यदि प्यास न लगे तो शरीर की शुद्धि नहीं हो सकती । शरीर में बहुत सारे मैल जम जाते हैं पानी से उनका शोधन हो जाता है । शरीर के आन्तरिक अंगों को अपना काम करने के लिए पानी की जरूरत होती है। शरीर को लचीला रखने के लिए पानी की जरूरत होती है। पानी की शरीर को जरूरत है और उस जरूरत की पूर्ति प्यास के द्वारा होती है।
मन की शुद्धि भी प्यास के द्वारा होती है। जब तक प्यास नहीं जागती पानी नहीं पीया जाता, मन की शुद्धि नहीं होती। यह ध्यान उस प्यास का उत्तर है। जब प्यास लगती है तो उसे पानी चाहिए। ध्यान एक पानी है जो मन पर जमे हुए सारे कषाय के मैलों को दूर करता है । मन की बहुत सूक्ष्म रचना है और उसमें बहुत सारे सूक्ष्म मैल प्रतिदिन जमते रहते हैं। शरीर का शोधन जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है मन का शोधन, मस्तिष्क का शोधन । आजकल शोधन की बात कुछ गौण हो गई है। आयुर्वेद का विज्ञान था कि शोधन किया जाए और फिर दबा ली जाए। अब दमन की बात है, शोधन की बात नहीं है। कहा जाता है- इतनी तेज दवा लो कि जो कुछ है, वह दब जाए। दब तो जाएगा, पर वह मिटेगा नहीं। जैसे ही कोई अवसर मिलेगा, वह एक साथ फूट पड़ेगा। यह दबाने की प्रक्रिया एक बात है और शोधन की प्रक्रिया दूसरी बात है।
तीन तत्त्व : मानसिक जगत्
वात, पित्त और कफ ये शरीर के तीन दोष माने जाते हैं। मानसिक दृष्टि से देखें तो मानसिक जगत् में भी वात, पित्त और कफ होते हैं। क्रोध, उत्तेजना - ये
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